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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य
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में २२वें तीर्थंकर का अवतरण होना । राजधानी सूर्यपुर का रोचक वर्णन किया गया है ।
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द्वितीय सर्ग में शिवादेवी द्वारा १४ स्वप्नों का देखना । भावी में पुत्र की प्राप्ति । भविष्य में ४ दिशाओं को जीतकर अधिपति बनने आदि के उल्लेख के साथ प्रभात-वर्णन नामक इस सर्ग के अन्त में प्रभात का मार्मिक वर्णन किया गया है ।
तृतीय सर्ग में पुत्रजन्म का वर्णन है ।
चतुर्थ सर्ग में दिक्कुमारियों द्वारा सूति कर्म करना ।
पंचम सर्ग में इन्द्र शिशु को जन्माभिषेक के लिए मेरुपर्वत पर ले जाते हैं। छठे सर्ग में शिश के स्नात्रोत्सव का वर्णन है। सातवें सर्ग में पुत्र जन्म का समाचार पाकर समुद्रविजय का आनन्द विभोर होना, बंदियों को मुक्त करना, जीव वध पर प्रतिबंध लगाना, शिशु का नाम अरिष्टनेमि रखा जाना है । ८वें सर्ग में अरिष्टनेमि के सौन्दर्य का एवं परम्परागत षड् ऋतुओं का हृदयग्राही वर्णन व शक्ति परीक्षा में कृष्ण को पराजित करना है । नवें सर्ग में माता-पिता द्वारा विवाह का आग्रह करना, नेमिनाथ द्वारा अस्वीकार कर देना, परन्तु माता-पिता के आग्रहवश शादी के लिए उग्रसेन की पुत्री राजीमती के साथ तैयार होना है । दसवें सर्ग में नेमिनाथ वधूगृह को प्रस्थान करते हैं । वधूगृह में बारात हेतु पशुओं की करुण चित्कार को सुनकर वे विवाह को बीच में ही छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं । ग्यारहवें सर्ग में राजीमती का नेमि-वियोग से उत्पन्न विलाप का वर्णन है, मोह-संयम युद्ध-वर्णन नामक इस सर्ग के उत्तरार्द्ध में मोह पराजित होकर नेमिनाथ के हृदयदुर्ग को छोड़ देता है, जिससे उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति होती है । बारहवें सर्ग में श्रीकृष्ण का दर्शनार्थ जाना, देशनोपदेश श्रवण कर कई लोगों द्वारा संयम ग्रहण करना, आदि का सुन्दर वर्णन कवि द्वारा सम्पन्न किया गया है । कथानक अत्यल्प है; किन्तु कवि ने विस्तार करने का प्रयास किया है । काव्य कथानक की दृष्टि से ढीला पड़ता नजर जाता है । लेकिन, महाकाव्य की दृष्टि से काव्यरूढ़ियां भी जगह-जगह दिखलाई पड़ती हैं ।
प्रकृति-चित्रण
कवि ने महाकाव्य के अन्य पक्षों की भाँति प्रकृति-चित्रण में अपनी
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