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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य
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अर्जुन ऐश्वर्य में विष्णु, ज्ञान में गुरु, सौंदर्य में कामदेव और शौर्य में वह अपने समान अकेला ही है। कवि वस्तुपाल ने ऐसे महनीय चरित्रों का उद्घाटन किया है। यद्यपि कथावस्तु अत्यल्प है तो भी चरित्रों का विकासत स्वरूप सुन्दर रूपेण चित्रित है।58
जैसाकि मैं पूर्व में विवेचित कर चुका हूं कि आनन्द-नामान्त महाकाव्यों में मित्रता, आनन्द और उल्लास की भावनाओं का मनोरम चित्रण हता है । उसी के अनुसार इस काव्य का कथानक विविध घटनाओं की अन्विति से युक्त तथा मानव जीवन की गहनतम अनुभूतियों और उच्चादर्शों को उद्भावना से पूर्ण है। मानव हृदय की शाश्वत वृत्तियों का उद्घाटन, कर्तव्यपरायणता, स्वार्थत्याग और उदात्तभाव भूमि काव्यरसिकों और पाठकों को सहज हो अपनी ओर खींच लेती है। रस-वर्णन
रसों के वर्णन में भी कवि ने अद्भुत सफलता अजित की है। शृगार, वीर, रौद्र, बीभत्स आदि रसों का प्रस्तुत महाकाव्य में सुन्दर समायोजन हुआ है।
पार्थ सुभद्रा के अङ्ग प्रत्यंगों के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो जाता है। आर्द्र वस्त्रों के भीतर से उसका कुसमुवत् लोभनोय लावण्य उसके हृदय में सम्भोगेच्छा उत्पन्न कर देता है। यथा
नारा चोरान्तरदृश्यमान-सर्वा गलावण्यविशेषरम्याम् ।
पश्यन्निमा मन्मथमथ्यमानचेताश्चिरं चिन्तयतिस्म पार्थः ॥67
संयोग शृगार के साथ हो वियोग शृंगार के वर्णन में भी कवि पोछे नहीं रहा है। अर्जुन और सुभद्रा दोनों ही विरह पीड़ित हैं :
किमु चन्दनचर्चनं वृथा विहितं वक्षसि तापशान्तये । अमुना दयितास्मितप्रभा-स्मृतिबीजेन हहा हतोऽस्म्यहम् ।58
५६. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० ३३८
लेखक डॉ० नेमिचन्द्र जैन, प्र. भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी ५७. नरनारायणानन्दमहाकाव्यम् १०-५३ ५८. नरनारायणानन्दमहाकाव्यम् ११-११
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