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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
मैत्री या स्नेह को व्यक्त करने मात्र तक ही सीमित है । ऐसी स्थिति में इसे महाकाव्य के स्थान पर खण्ड काव्य मानना ही अधिक समीचीन है।
___ स्पष्ट है कि अर्जुन इस प्रबन्ध काव्य का नायक है। बलदेव प्रतिनायक है जो सुभद्रा प्राप्ति के फल के मार्ग में नायक के लिए बाधक बनता है। अन्य पात्र हैं-श्रीकृष्ण, सुभद्रा, सात्यकि आदि । काव्य में अलंकृत शैली का प्रयोग विशेषतः द्रष्टव्य है। प्रकृति चित्रण में कवि ने कथावस्तु की घटनाओं को आधार प्रदान करने के लिए प्रकृतिगत स्थितियों की योजना की है । दिन-रात, सन्ध्याएं, ऋतुएं जीवन के साथ-साथ चलती हैं । कवि ने प्रकृति के सहज चित्रों के बीच नरनारायण की मैत्री का विकास चित्रित किया है। चरित्र-चित्रण
उत्कृष्ट चरित्र का होना महाकाव्य के लिए एक आवश्यक तत्व है, चरित्र की परिभाषा करते हुए अरस्तू ने लिखा है-"चारित्र्य उसे कहते हैं जो किसी व्यक्ति की रुचि-विरुचि का प्रदर्शन करता हुआ नैतिक प्रयोजन को व्यक्त करे ।"55
प्रस्तुत काव्य में अर्जुन, श्रीकृष्ण, सुभद्रा, बलराम, साांक और दूत वनपाल आदि पात्र हैं। जिनमें अर्जुन तथा श्रीकृष्ण के चरित्र का विकास स्पष्ट प्रतिभासित होता है । अर्जुन नायक है और इसके चरित्र में सौन्दर्य, शील और शक्ति का समन्वय है। अर्जुन सुंदर ,प्रकृति प्रेमी, सहृदय और पराक्रमी है । सुभद्रा के सौन्दर्य को देखकर अर्जुन व्याकुल हो जाते हैं । उन्हें अपना जीवन नोरस प्रतीत होने लगता है। मित्र श्रीकृष्ण के परामर्श से वे सुभद्रा का अपहरण करते हैं । श्रीकृष्ण बलराम से अर्जुन के गुणों का चित्रण करते हुए कहते हैं ।
हरिः पर इवेश्वर्य शास्त्रे गुरुरिवापरः । स्मरोऽन्य इव सौन्दर्ये शौर्य किन्तु स एव सः ॥१२-७८॥
५५. अरस्तू का काव्यशास्त्र : डॉ० नगेन्द्र (हिन्दी अनुवाद) हिन्दी अनुसंधान परिषद्;
दिल्ली, वि० सं० २०५४. पृ० २२
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