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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य
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कथानक का स्रोत या आधार ग्रंथ
महाभारत इस काव्य के कथानक का आधार ग्रंथ है।54 आद्योपांत श्रीकृष्ण और अर्जुन के पारस्परिक स्नेह और मित्रता ही सर्वत्र व्याप्त है, यही इस काव्य का मूल प्रतिपाद्य है । महाभारत में वणित प्रस्तुत प्रसंग और नरनारायणानन्द काव्य के कथानक में साम्य है। पुष्टि के प्रयोजन से महाभारत में वर्णित उक्त प्रसंग भी उल्लेखनीय है । महाभारत के आदि पर्व के अन्तर्गत २१७ से २२०वें अध्याय तक यह कथा वर्णित है। कथा की रूपरेखा कतिपय बिन्दुओं में प्रस्तुत की जा सकती है।
----अर्जुन से मिलनार्थ श्रीकृष्ण का रेवतिक पर्वत पर आगमन । - बलराम का भी सपरिवार एवं सेना सहित पर्वत पर आगमन । --जल क्रीड़ा के प्रसंग में सुभद्रा और अर्जुन का परस्पर मुग्ध
होना। ----अर्जुन द्वारा सुभद्रापहरण । ---- सात्यकि एवं अर्जुन के मध्य यूद्ध । -श्रीकृष्ण की मध्यस्थता से युद्ध की समाप्ति । --अर्जुन सुभद्रा का पाणिग्रहण ।
महाभारत में आई हुई इस कथा की उपर्युक्त रूपरेखा से स्पष्ट ज्ञात होता है कि कवि ने महाभारत को ही अपने काव्य के कथानक का आधार बनाया है और प्रस्तुतीकरण की भिन्नता के साथ यही कथा पुनः विवेचित कर दी गई है। कथानक के स्वरूप और घटनाक्रम के आकारप्रकार को देखते हुए काव्य-प्रबन्ध रचना तो अवश्य है, किन्तु फलक विस्तार के अभाव में इसे महाकाव्य कहने में संकोच ही होता है। कृति को महाकाव्य मानने वाले विद्वज्जनों के पक्ष में यह तथ्य अवश्य हो है कि कथानक सर्गबद्ध है, किन्तु यह लक्षण प्रबंध काव्य का है । खण्ड काव्य में भो सर्गबद्धता होती है। नायक के जीवन की एक ही घटना वर्णित है। समग्र जीवन चित्रित नहीं है। इसका मन्तव्य भी मात्र श्रीकृष्ण अर्जुन
५४. महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर, आदि पर्व ।
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