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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
जीवन वर्णित है । नव-दम्पत्ति सुरापान का आनन्द लेते हैं और मधुमय क्रोडाएं करते हैं । रात्रि इसी प्रकार व्यतीत हो जाती है।
सातवां सर्ग-सातवें सर्ग में सूर्योदय का वर्णन आता है। कमल पुष्प विकसित हो जाते हैं । उन पर रात-भर से बन्दी भ्रमर उ ने लगते हैं।
आठवां सर्ग-आठवें सर्ग में बलराम रेवतिक पर्वत पर सपरिवार पहुंचते हैं । उनको सेना भी साथ है। अर्जुन को लेकर श्रीकृष्ण सपरिवार वन विहार के लिए जाते है ।
नौवां सर्ग-नौवें सर्ग में युवक-युवतियाँ पुष्पचयन करती हैं। दिन भर के इस कार्य से थकित सर्वजन विश्राम करने लगते हैं।
दसवाँ सर्ग-दसवें सर्ग में पुनः मूल कथानक का सूत्र पकड़ में आता है । जलकोड़ारत सुभद्रा को देखकर अर्जुन उस पर मुग्ध हो जाता है, सुभद्रा भी अर्जुन के प्रति आकृष्ट होती है। __ग्यारहवां सर्ग-ग्यारहवें सर्ग में अर्जुन और सुभद्रा की पारस्परिक वियोग स्थिति के कारण उत्पन्न उदासीनता का चित्रण है । सुभद्रा अर्जुन के पास दूत भेलतो है और उसे रेवतिक उद्यान में मिलन के लिए निमंत्रित करती है।
बारहवाँ सर्ग-बारहवें सर्ग में मन्मथ पूजन के बहाने सुभद्रा उद्यान में पहुंचती है और अर्जुन उसका हरण कर लेता है। इस अपहरण की सूचना पाकर बलराम सात्यकि को उनका पीछा करने के लिए सेना सहित भेजता है। श्रीकृष्ण मध्यस्थ बनकर बलदेव को शांत करते हैं। - तेरहवां सर्ग-तेरहवें सर्ग में सात्यकि और अर्जुन के युद्ध का वर्णन है। बलदेव रणभूमि में जाकर युद्ध रोकने का आदेश देता है ।
चौदहवां सर्ग-चौदहवें सर्ग में युद्ध समाप्त हो जाता है । श्रीकृष्ण अर्जुन को साथ लेकर द्वारिका लौट जाते हैं।
पन्द्रहवां सर्ग-पन्द्रहवें सर्ग में अर्जुन सुभद्रा विवाह वर्णित है। स्वयं बलराम यह पाणिग्रहण संपन्न करवाते हैं । यहीं इस काव्य का कथानक इति पर पहुंच जाता है ।
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