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संस्कृत जैन कृष्ण माहित्य
इस महाकाव्य के १६वें सर्ग की प्रशस्ति में आबू और गिरनार के मंदिरों का उल्लेख नहीं है । इसलिए यह अनुमान किया जा सकता है कि इस महाकाव्य की रचना सन् १२३०-३१ में हुई होगी। कवि वस्तुपाल का निधन वि० सं० १२६६ माघकृष्णा ५ सन् १२४६ को हुआ 152
इसलिए कहा जा सकता है कि वस्तुपाल का समय १३बों शती है। वस्तुपाल की इस कृति के अतिरिक्त आदिनाथ स्तोत्र, अम्बिकास्तोत्र और आराधना गाथा, ये ४ कृतियां हैं।
कथानक
प्रथम सर्ग-प्रथम सर्ग में कवि समुद्र बट स्थित द्वारका नगरी के वैभव और शोभा का वर्णन करता है । इस नगर में चित्ताकर्षक रमणीय भवन हैं । प्रशस्त और सुशोभित राजमार्ग है । जन-संकुल हाटें हैंइत्यादि।
द्वितीय सर्ग-द्वितीय सर्ग में श्रीकृष्ण राजसभा में विराजित हैं । दूत आकर उन्हें संदेश देता है कि रेवतक पर्वत स्थित प्रभास तीर्थ में अर्जन का आगमन हुआ है। श्रीकृष्ण सोत्साह अर्जुन का स्वागत करने तथा उससे भेंट करने जाते हैं ।
तृतीय सर्ग-तृतीय सर्ग में श्री कृष्ण अर्जुन मिलन का वर्णन है । श्रीकृष्ण अर्जुन से कुशल क्षेम पूछते हैं।
___ चौथा सर्ग-चौथे सर्ग में ऋतु वर्णन है । षड्ऋतुएं सेवा के लिए उपस्थित होती हैं । सर्वत्र प्रसन्नता, उल्लास और उमंग का वातावरण छा जाता है।
पाँचा सर्ग-पांचवें सर्ग में प्रकृति वर्णन की प्रधानता है । सूर्यास्त हो जाता है, सर्वत्र सांध्य सुषमा छा जाती है । कालान्तर में चन्द्रमा की शुभ्र-शीतल चांदनी छिटक जाती है।
छठा सर्ग-छठे सर्ग में द्वारावती के नगरवासियों का सुखमय
५२. वसन्तविलास, बड़ौदा १६१७ ई० १४१३७ ५३. जैनस्तोत्र समुच्चय, सं० चतुरविजयमुनि, प्र०निर्णयसागर प्रेस बम्बई, पृ०१४३
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