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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य
(3) नरनारायणनन्द महाकाव्यम्
आनन्द नामान्त काव्यों की प्रणाली का आरंभ पतंजली के द्वारा उल्लिखित महानंद काव्य के निर्देश से मिलता है ।43 आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र ने कौमुदी-मित्रानंद नाटक लिखा है । 44 वस्तुपाल का नरनारायणानन्द एक ऐसा महाकाव्य है, जिसके आधार पर आगे चलकर आनन्द, नामान्त काव्यों और नाटकों की एक परंपरा ही विशेष रूप से प्रारंभ हो गई थी। अमर चंद्रसूरि ने पद्मानन्द नहाकाव्य लिखा है ।45 नेपाल के कवि मणिक ने भारत नंद नाटक १४वीं शती में लिखा है। कुवलयानंद की रचना अप्पय्य दीक्षित ने १७वीं शती में की है। इस तरह १७वीं शती में और भी अनेक आनन्द नामांत रचनायें हई हैं।46 आनन्द नामान्त काव्यों का प्रमुख विषय मित्रता, आनन्द एवं उल्लास का प्रतिपादन करना ही हुआ करता था।
रचयिता और रचनाकाल
वस्तुपाल गुजरात और मालबे का राजा एवं एक कुशल प्रशासक था। साथ ही वह एक महाकवि भी था । वस्तुपाल राजा वोरधवल और उसके पुत्र वीसलदेव का महामात्य था। कवि होने से उसे अच्छे कवियों की परख थी, इसका प्रमाण गिरनार के शिलालेखों में मिलता है।47 आब
४३. संस्कृत-साहित्य का इतिहास : लेखक वाचस्पति गैरोला, प्र० चौखंबा विद्याभवन
वाराणसी. सन् १९६०, पृ० ६४५ ४४. नाट्यदर्पणम्-ओरिएण्टल इन्स्टीच्यूट, बडौदा, सन् १९५१, पृ० ५१ । ४५. पद्मानन्द, सं० एच०आर० कापडिया, प्रकाशन ओरिएण्टल इन्स्टीच्यूट बडौदा,
सन् १६३२। ४६. संस्कृत साहित्य का इतिहास, लेखक वाचस्पति गैरोला, वाराणसी संस्करण
पृ० ८१३, ६६६, ८१५ । ४७. महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन ।
डॉ० भोगीलाल सांडेसरा, प्र. जैन संस्कृति सशोधन मण्डल, वाराणसी, सन् १९५६, पृ० ५५ ।
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