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________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य जिनके हाथों की लम्बाई ने पुष्पदन्त (दिग्गज) के शुण्डादण्ड को तिरस्कृत कर दिया है और जिनकी सेवा में पुष्पदन्त सूर्य चन्द्रमा त्रिकाल उपस्थित होते हैं, वे पुष्पदन्त भगवान् हम सबको कल्याण प्रदान करें। श्लेष ___ दो से अधिक अर्थ जिस श्लोक में श्लिष्ट-निबद्ध रहते हैं, उस श्लोक में श्लेषालंकार का चमत्कार दिखलाई पड़ता है-यथा सुवर्णवर्णद्युतिरस्तु भूत्यै श्रेयान्विभुर्त विनताप्रसूतः । उच्चस्तरां यः सुगति ददानो विष्णोः सदानन्दयतिस्म चेतः । 1 अर्थात जिनके शरीर की कांति सुवर्ण के समान उज्ज्वल थी, जो भक्त पुरुषों को स्वर्ग, अपवर्ग आदि उत्तम गति को देने वाले थे, जो स्वसमानकालिक नारायण के चित्त को सर्वदा प्रसन्न किया करते थे और हित का उपदेश देकर आनंदित किया करते थे वे विनता माता के पुत्र श्रेयांसनाथ तुम सबको विभूति प्रदान करें। इस पद्य का द्वितीय अर्थ जिसके शरीर की आभा सुवर्ण के समान पीतवर्ण है, जो विभु है तथा श्रेय कल्याणरूप है, जिसने ऊंचे आकाश में सुन्दर गति प्रदान की है तथा जो श्रीकृष्ण के चित्त को हमेशा आनंदित करता है, वह विनतासुत वैनतेय-गरुड तुम सबको विभूति प्रदान करं। भाषा-शैली प्रस्तुत महाकाव्य की भाषा शैली भो अत्यन्त समृद्ध है। प्रसादगुण होने से कविता सहज बोधगम्य है । यथा विलोकयन्त्रत्र कुतूहलेन लीलावतीनां मुखपङ कजानि। जज्ञे स्मरः सेयरतिप्रयुक्त-कर्णोत्पलाघातसुखं चिरेण ॥42 अर्थात् सुन्दरियों के मुखकमल को कुतूहलपूर्वक देखते हुए युवक ईर्ष्यापूर्वक कर्णों में प्रयुक्त कमलों की मार के सुख को बहुत समय तक अनुभव करते रहे। ४१. ४२. ११११ ११४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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