________________
संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य सौन्दर्य का चित्रण बड़े विस्तार के साथ किया गया है। उपजाति, वसन्ततिलका, मालिनी, स्रग्धरा, अनुष्टुप् आदि छंदों का व्यवहार पाया जाता है। कवि ने वर्णन चमत्कार-सृजन के लिए वस्तुओं का चित्रण करते हुए लिखा है
विराजमानामृषभाभिरामैनमिर्गरीयो गुणसंनिवेशाम् ।।
सरस्वतीसंनिधिमाजमर्वी ये सर्वतो घोषवती वहन्ति ॥33
सुराष्ट्र देश बैलों द्वारा सुन्दर ग्रामों से शोभायमान गुरुतर, गुणों की सन्निवेश रचना, पंक्तिबद्ध गृहों से युक्त, सरस्वती नदियों के सामीप्य को प्राप्त और गोपवसतिकाओं से युक्त पृथ्वी को सब ओर से धारण करते हैं।
श्लेष के कारण उक्त पद्य का अप्रकृत अर्थ भी है, जिसमें कवि ने संगीत के सिद्धांतों का निरूपण किया है तथा सुराष्ट्र देशवासियों को संगीत प्रेमी सिद्ध किया है। द्वारामतो नगरी का सजीव और सुन्दर चित्रण चित्रित करते हुए कवि ने लिखा है कि
एवं विधाँ तो निजराजधानी, निर्मापयामीति कुतूहलेन ।
छायाछलादच्छजले पयोधौ, प्रचेतसाया लिखितेव रेजे ॥34
अर्थात् स्वच्छ जल से युक्त समुद्र में द्वारावती नगरी का जो प्रतिबिंब पड़ रहा था उससे ऐसा प्रतीत होता था कि जलदेवता वरुण ने "मैं भी अपनी राजधानी को इसके समान सुन्दर बनाऊंगा' इस कुतूहल से मानो एक चित्र खींचा हो। प्रकृति-वर्णन
काव्य-सौष्ठव की दृष्टि से प्रकृति-वर्णन का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है । प्रस्तुत महाकाव्य में यह गुण भी यत्र तत्र दिखलाई देता है। कुमुदिनी की सहानुभूति का वर्णन करता हुआ कवि उसमें मानवीय भावों का संचार कर रहा है
करणस्वरं विलपतोरनेकशः
__ पुरतो निशाविरहिणोविहंगयोः ।
३३. नेमिनिर्वाणकाव्यम् ११३३ ३४.
११३८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org