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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
कथानक की दृष्टि से कवि द्वारा आधार माना गया है । अधिकांश कथानक इसी पुराण ग्रंथ पर आधारित हैं। प्रस्तुत काव्य में अरिष्टनेमि की जन्म तिथि श्रावण शुक्ला ६ दी गयी है । जो हरिवंशपुराण से भिन्न है ।३° उत्तर पुराण में अवश्य ही इसी तिथि का उल्लेख किया गया है 11 हरिवंश पुराण और उत्तर पुराण के अतिरिक्त कवि वाग्भट के द्वारा तिलोयपण्णति जैसे आर्षग्रंथ का सहारा भी लिया गया है। रेवतिक पर्वत पर अरिष्टनेमि और राजीमती के मिलन का प्रसंग और दोनों में परस्पर स्नेह जागरित हो जाना, कथानक यह भाग कदाचित तिलोयपण्णति के प्रभाव स्वरूप हो आया है। प्रबन्ध काव्य के कथानक के स्वरूप की कसौटी पर नेमिनर्वाण काव्य के कथानक को कसकर देखें तो हमें ज्ञात होता है कि इस दृष्टि से प्रस्तुत कथानक में शिथिलता है। कवि ने अधिकतर बाह्य प्रकृति का अथवा कुछ आयोजनों का हो वर्णन किया है। अरिष्टनेमि के जीवन के कतिपय मार्मिक प्रसंगों को ही कवि ने चना है और उन्हीं का अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत वर्णन कर दिया है। नायक के समग्र जोवन को अधिक महत्व नहीं दिया है। अरस्तु ने कथानक गठन में अन्विती पर पर्याप्त बल दिया है ।32 महाकाव्य
महाकाव्य के स्वरूप-संरचना संबंधो लक्षण इस ग्रंथ में निहित हैं। मानव-मात्र के हृदय में स्थापित धार्मिक वृत्तियों, पौराणिक और निजधरी विश्वासों का भी कवि के द्वारा अच्छा विवेचन हुआ है। प्रभा, संध्या, रात्रि, नगर, देश, पर्वत, नदी, समुद्र, द्वोप आदि के अलंकृत वर्णनों की प्रचरता भो इस काव्य में मिलतो है। महाकाव्य का नामकरण नायक द्वारा फल प्राप्ति के आधार पर किया गया है। द्वारावती नगरी के वैभव एवं
३०. शुद्धवैशाखत्रयोदशतिथौ
-हरिवंशपुराण, १९६२ ई० । भारतीय विद्यापीठ, काशी ३१. श्रावणे सिते षष्ठ्यां --उत्तरपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९५४ । ३२. अरस्तू का काव्यशास्त्र, अनु० डॉ० नगेन्द्र, पृ० २४, प्रकाशक --हिन्दी अनु
संधान परिषद्, दिल्ली वि०वि०, १९१४ ।।
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