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जैन परंपरा श्रीकृष्ण साहित्य
शिवारानी के गर्भ में तीर्थंकर का जीव आने वाला है। शिवारानी १६ उज्ज्वल स्वप्न देखती है और पति से उनके फल के विषय में पूछती है। राजा उत्तर में कहता है कि पुत्र रत्न की प्राप्ति होने वाली है।
___ चौथा सर्ग-तीर्थंकर के गर्भ में आने से रानी का सौन्दर्य विकसित होने लगता है । श्रावण शुक्ला षष्ठी को पुत्र का जन्म होता है । चतुनिकाय देवगण द्वारावती पहुंच जाते हैं। ___ पाँचवाँ सर्ग- इंद्राणी एक मायावी पुत्र को लेकर प्रसूति गृह में आती है । शिवारानी के पास उसे लिटाकर त्रिलोकीनाथ को अपने साथ ले जाती है। इंद्र बालक को सुमेरु पर्वत पर ले जाता है और पाण्डुशिला पर देवता भगवान का अभिषेक करते हैं। इंद्र उनका नाम रखता है अरिष्टनेमि।
छठा सर्ग-अरिष्टनेमि जन्म से ही तीन ज्ञान के धारक थे। क्रमशः विकसित होते हुए अरिष्टनेमि युवा हो गए। यादवगण रैवतक पर्वत पर वसन्तोत्सव मनाने जाते हैं । सारथी अरिष्टनेमि को भी वहां जाने को प्रेरित करता है।
सातवाँ सर्ग-रैवतक पर्वत अपनी प्राकृतिक शोभा से सजा अनूठी छटा बिखेर रहा था । नेमिनाथ इस शोभा से बड़े प्रभावित हुए । प्रकृति के सौंदर्य से और प्रकृति के इस अपार रूप पर मुग्ध होकर वृक्षों की सघन छायातले पट-मंदिर में निवास करने लगे।
आठवाँ सर्ग-माधव भी क्रीडार्थ रैवतक पर्वत पर पहुंचते हैं। यादव अपनी सुन्दरी युवतियों के साथ भाँति-भाँति की जल क्रीडाएं करते हैं और आनंदित होते हैं।
___ नौवाँ सर्ग-सूर्यास्त हो जाता है। चन्द्रमा अपनी शीतल चाँदनी बिखेरने लगता है। यादव युवक-युवतियाँ नाना भाँति की प्रणय-क्रीडाओं से संभोग सुख प्राप्त करने लगे।
दसवा सर्ग-मधुपान का दौर चलता है। यादव कुमार और युवतियाँ छककर मधुपान करती हैं । उन्मत्त और अलमस्त युवक बहुविधि से सुरतक्रीडाओं में प्रवृत्त होते हैं।
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