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________________ संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य ५५ अहिच्छत्रपुरोत्पन्न प्राग्वाटकुलशालिनः । छाहडस्य सुतश्चके प्रबन्धं वाग्भटः कविः ॥ यह प्रशस्ति श्लोक श्रवण बेलगोला के स्व० पं० दौर्बलि जिनदास शास्त्री के पुस्तकालय वाली नेमिनिर्वाण काव्य की प्रति में प्राप्त है। और, इससे विदित होता है कि कवि वाग्भट प्रथम का जन्म प्राग्वाट् (पोरवाड) वंश में अहिच्छत्रपुर में हुआ और उनके पिता का नाम छाहड था। कवि दिगंबर संप्रदाय का था। अतः उसने मल्लिनाथ को कुमार रूप में नमन किया है। ओझा जी के अनुसार नागोर का पुराना नाम नागपुर या अहिच्छत्रपुर है ।28 नेमिनिर्वाण काव्य के रचनाकाल के विषय में कोई अन्तक्ष्यि उपलब्ध नहीं होती। वाग्भट्टालंकार के रचयिता वाग्भट द्वितीय ने अपने लक्षण ग्रन्थ में प्रस्तुत काव्य के कतिपय अंशों को ग्रहण किया है। इससे जहाँ यह विदित होता है कि नेमिनिर्वाणम् काव्य का कर्ता वाग्भट द्वितीय का पूर्ववर्ती कवि अर्थात् वाग्भट प्रथम है। वहीं यह भी संकेतित हो जाता है कि यह काव्य वाग्भटालंकार से पूर्व को रचना है। इस आधार पर अनुमानित किया जाता है कि नेमिनिर्वाण काव्य की रचना वि० सं० ११७१ से पूर्व की है।29 कथानक-प्रथमसर्ग-आरंभ में कवि ने २४ तीर्थंकरों को श्रद्धा सहित नमस्कार किया है और तत्पश्चात् मूलकथा आरंभ की है। सौराष्ट्र में दुवारावती नगरी में यदुवंश श्रेष्ठ समुद्रविजय का शासन है। प्रजाहित और सुव्यवस्थित शासन चले इसलिए राजा अपने अनुज वसुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण को युवराज पद पर प्रतिष्ठित करते हैं। पुत्राभाव में राजा चिंतित रहते हैं और अनेक व्रतादि करते हैं। द्वितीय एवं तृतीय सर्ग-एक दिन राजा समुद्रविजय आकाश से देवांगनाओं का अवतरण देखते हैं। उनसे उनको सूचना मिलती है कि २७. जैन हितेषी भाग १२ अंक ७-८, पृ० ४८२ २८. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, प०२८२, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली २६. वही पृ० २८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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