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जैन परंपरा श्रीकृष्ण साहित्य
ढाँचे ही हैं जो किसी छंद के चरण के भीतर व्यस्त रहते हैं । 22 कवि ने विविध प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है।
प्रकृति-चित्रण
कवि ने वसन्त, शरद्, सन्ध्या, रजनी, चन्द्र, सूर्य और उषा आदि का प्रकृति चित्रण बड़े सुन्दर ढंग से किया है । यहाँ पर दो उदाहरण वसन्त के वर्णन में द्रष्टव्य हैं- प्रथम में वसन्त के प्रभाव का विवेचन है तो दूसरे में वसन्त की रात्रि की क्षीणता का विवेचन है
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सर्वतो मुकुलयन् सहकारान् पुष्पयन्ननु वनं वनराजीम् । अन्तरेऽत्र समवाप वसन्तः क्षारसेवनमिव क्षतमध्ये || 23 यामिनी प्रियतमापवृशत्वं खण्डितेव शशिना दयितेन । वायवो मलयजा ववुरस्य तापशान्तिकृतये कृपयेव ॥24
(२) ने मिनिर्वाणकाव्यम्
कृति और कृतिकार
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महाकाव्य नेमिनिर्वाणकाव्यम् अपने १५ सर्गों की परिधि में २२ वें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि का जीवन वृत्तांत प्रस्तुत करता है । प्रस्तुत महाकाव्य के कर्त्ता वाग्भट प्रथम हैं! वाग्भट की यह प्रसिद्ध कृति जहाँ अपने काव्य चमत्कारों के लिए विख्यात है वहाँ अपने दूसरे पक्ष में भी वह पीछे नहीं है । काव्य अपने मार्मिक प्रसंगों के कारण पाठकों के मानस पटल पर छा जाता है और अपना प्रभाव अंकित कर देता है ।
वाग्भट नामधारी एकाधिक विद्वान हुए हैं । प्रस्तुत महाकाव्य की एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध हुई है जिसका लेखनकाल १७२७ विक्रमसंवत् है। उक्त प्रति में एक प्रशस्ति श्लोक मिलता है ।
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२२ आचार्य रामचंद्र शुक्ल, काव्य में रहस्यवाद, पृ० १३५, प्रथम संस्करण, सं० १९८६
२३. प्रद्युम्न चरित्र ७।३७
२४. वही ७-३८
२५. नेमिनिर्वाण - सं० पं० शिवदत्त शर्मा तथा काशीनाथ शर्मा, प्रका० निर्णय सागर
प्रेस, बंबई, १९३६ ई० में प्र० ।
२६. जैन सिद्धांत भवन आरा की प्रति ।
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