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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य
प्रसाद माधुर्य तथा ओज इन समस्त गुणों का समन्वय भी यत्र तत्र उपलब्ध होता है। यहाँ पर कुछ उदाहरण दिए जाते हैं। माधुर्यगुण 18
तन्वी स्वयं मुरजिता करपंकजाभ्यां उत्थापिता मलयजादि रसेन सिक्ता। पूर्ण नभो विवधती करणस्वनेन मृच्छों विहाय हरिणा सहसा रुरोद ।।
ओजगुण
रेणुर्घण्टासन्ययोरणानां चक्रुः शब्दं काहलं काहलश्च ।20 भेरीभम्भास्तूर्यभेदांश्च येऽन्ये चेरुविश्व व्याप्तदिक्काः सन्तात् ।।
प्रसाद
मित्रं समोहारि यशो विभूषा ।
नियतितो जलधौ पतिते रवी।
यह सत्य है कि महाकवि ने किसी भी भाव को ज्यों का त्यों ग्रहण नहीं किया है, उसने अपनी प्रतिभा से भावों में स्फीति उत्पन्न की है और उन्हें एक नया परिवर्तन रूप प्रदान किया है जो अत्यंत मनोहारी बन गया है। छन्द-योजना
काव्य में छंदों का उपयोग कवि अपनी विशद अभिव्यंजना के लिए करता है । यह अभिव्यक्ति नाद सौन्दर्य युक्त शब्दों से प्रकट होती है। छंद काव्य के लिए ध्वनि सम्बन्धी एक कला है। इसके साथ गति, यति और लय ये भी आवश्यक हो जाते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में छंद वास्तव में बंधी हुई लय के भिन्न-भिन्न ढांचों (पैन्टर्स) का योग है, जो निदिष्ट लम्बाह का होता है । लय-स्वर के चढ़ाव-उतार-स्वर के छोटे-छोटे
१८. प्रद्युम्न चरित्र ५।१६ १६. वही ६।३४६ २०. वही १२१ २१ वही ४।२८
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