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________________ संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य रस शृंगाररस - काव्य में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण की केलिक्रीडा के रूप में संयोग श्रृंगार का चित्रण चित्रित है - यथा 15 नर्ममर्मपरिबालना गिरः सत्यया सह विधाय केशवः । स्वाञ्चलस्थांकितवक्त्रपङ्कजः स्वापकेलिमालम्ब्य तस्थिवान् । यहाँ रुक्मिणी आलम्बन और श्रीकृष्ण आश्रय हैं । रुक्मिणी के साथ भोगे हुए भोगों को श्रीकृष्ण सत्यभामा के यहाँ शृंगारोचित सपत्नीक ईर्ष्या के रूप में व्यक्त करते हैं । अतः रति के स्थायी भाव की अभिव्यक्ति होती है । मालती, चन्दन, शरत्कालीन चाक्ष, कमल, धनसार, उशीर आदि शीतलता प्रदान करने वाली वस्तुएं संताप को वृद्धिंगत करती थीं । विरहाग्नि से संतप्त उसे किसी भी प्रकार से शांति प्राप्त नहीं हो रही थी । इस प्रसंग में हेमरथ की पत्नी आलंबन है । उद्दीपन वसंत ऋतु है, अनुभाव मधु की शारीरिक चेष्टाएं हैं और हर्ष - चिन्ता और औत्सुक्य आदि संचारी भाव है। इसी प्रकार शांतरस वीररस आदि का भी कवि ने सुन्दर प्रयोग किया है । कतिपय अलंकारों के उदाहरण काव्य-सौष्ठव की श्रीवृद्धि के लिए अलंकारों का अपने आप में महत्त्वपूर्ण स्थान है । प्रस्तुत कृति अलंकारों की दृष्टि से भी समृद्ध है । अनुप्रास 10 मुखपंकजं मुखसुगन्धियया न हि । पीयतेऽस्य सरसं सुदृशा || यहां मुखपंकज और मुख सुगन्धि में अनुप्रास है । विरोधाभास 17 मातंग संगसवतोऽपि भुञ्जानो मेदिनीमपि । स्त्रीमनोनेत्रचौरोऽपि स तथापि सतां यतः । ५१ १५. प्रद्युम्न चरित्र ३।४५ १६. वही ८।११७ १७. वही ६।१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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