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________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य उल्लेखनीय चित्रण मिलते हैं । कालसंवर उदात्त और दयालु स्वभाव का है। पर्वतशिखा पर असहाय शिशु को देखकर उसका हृदय द्रवित हो उठा और उसने उसे पुत्रवत् अपना लिया। कंचनमाला को यह आश्वासित किया कि उसके शिशु को युवराज बनाया जाएगा। कालसंवर वीर भी है। प्रद्युम्न के साथ के युद्ध में उसकी इस विशेषता का परिचय मिलता है। नारी-पात्रों में रुक्मिणी और सत्यभामा को चित्रण में प्रमुखता मिली है। सत्यभामा के चरित्र में सपत्नी डाह का रंग विशेष रूप से उभरा है। इसके विपरीत रुक्मिणी को सद्गुण-सम्पन्न, सुशील और विवेकयुक्त दिखाया गया है। शिशु प्रद्युम्न के अपहरण के समय वह जिस प्रकार करुण-क्रन्दन और विलाप करती है उससे उसके वात्सल्यपूर्ण मातृत्व की झलक प्राप्त होती है। पुत्र के पुनर्मिलन से वह हर्षोन्मत्त हो बाल-लीलाओं से विभोर हो उठती है। इससे उसकी ममता की गहनता का परिचय मिलता है । कवि ने रुक्मिणी के चरित्र में नारी सुलभ सभी सद्गुणों का समावेश बड़ो कुशलता के साथ कर दिया है। रस, छंद और अलंकार योजना प्रस्तुत काव्य प्रद्युम्नचरितम् में कवि महासेन ने स्थान-स्थान पर विभिन्न रसों की सृष्टि की है । शृंगार, करुण, बीभत्स, रौद्र, शान्त आदि का परिपाक इस रचना में दृष्टिगत होता है। भावों के स्वाभाविक उद्रेक एवं विभावों के प्रत्यक्षीकरण के निमित्ति अलंकारों का आश्रय सार्थक रहता है। इस उद्देश्य से अलंकारों के प्रयोग में कवि प्रस्तुत कृति में सफल रहा है। काव्य में संगीत तत्त्व की अभिवृद्धि के लिए कवि ने अनुप्रासों का विशेष रूप से प्रयोग किया है। यमक, पुनरुक्ति, वोप्सा, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, भ्रान्तिमान, संदेह, अपन्हुति, अतिशयोक्ति, असंगति, व्यतिरेक, अर्थान्तरन्यास, परिसंख्या आदि अनेक प्रकार के अलंकार काव्याभूषण नगीनों की भाँति जड़े हुए हैं। इसी प्रकार प्रसंगानुरूप छंदों का प्रयोग भी व्यवस्थित ढंग से हुआ है । जपजाति, शार्दूल विक्रीडित, वसंततिलका, वंशस्थ, प्रहर्षिणी, द्रुतविलंबित, पृथ्वी, अनुष्टुप्, उपेन्द्र वज्रा, मालिनी, ललिता, शालिनी आदि अनेक प्रकार के छंदों का कवि ने प्रयोग किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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