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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य सिर के केश कतरवाने थे। वह पति और पुत्र के जीवित होते हुए भी इस आसन्न विवशता की परिस्थिति से बड़ी दुःखित हो जाती है। माता को इस संकट से उबारने के लिए प्रद्युम्न वनेचर के वेष में उदधि का हरण कर लेता है ताकि विवाह ही सम्पन्न न हो सके। नारद जी के समक्ष उदधि विलाप करती है और प्रद्युम्न अपना वास्तविक रूप प्रकट करता है। उदधि उस पर अनुरक्त हो जाती है। युद्ध में वह सत्यभामा के पुत्र भानु को पराजित कर देता है । मरकट रूप धारण कर वह उपवन और नगर के अनेक भागों को नष्ट कर देता है । मेष द्वारा बलराम को भी मूच्छित कर देता है । तब वह अत्यन्त कुरूप और मलिन वेश में माता रुक्मिणी के भवन में आता है। श्रीकृष्ण के निमित्त बने हुए सभी पकवान वह उसे खिलाती है । तब वह अपना वास्तविक रूप प्रकट करता है। विद्याबल से वह माता को बालक्रीडाओं के दृश्य दिखाता है। प्रद्युम्न इसके पश्चात् यादवों और दुर्योधन की सेनाओं के साथ मायावी युद्ध करता है ।
दसवाँ सर्ग
___ इसी भीषण युद्ध में प्रद्युम्न का बाण-कौशल देखकर श्रीकृष्ण चकित रह जाते हैं। वे उससे बाहुयुद्ध का प्रस्ताव करते हैं जिसे प्रद्युम्न स्वीकार कर लेता है। परस्पर सम्बन्ध से अपरिचित पिता श्रीकृष्ण अपने ही पुत्र प्रद्युम्न से बाहुयुद्ध के लिए उसके सामने खड़े होते हैं । पिता-पुत्र को आमने-सामने देखकर नारद जी बड़े कौशल से प्रद्युम्न का परिचय दे देते हैं । श्रीकृष्ण बड़े प्रसन्न होते हैं । आवभगत के साथ प्रद्युम्न का नगर प्रवेश होता है । श्रीकृष्ण उदधि के साथ प्रद्युम्न का विवाह कराते हैं। कालसंवर और कनकलता भी विवाहोत्सव में सम्मिलित होते हैं ।
ग्यारहवां सर्ग
श्रीकृष्ण जाम्बवती पुत्र शाम्ब को एक कुलोन स्त्री के शीलभंग के अपराध में निर्वासित कर देते हैं। वसन्तविहारार्थ वन को गए हुए प्रद्युम्न की भेंट शांब से होती है। वह शांब का विवाह सम्पन्न करता है, प्रद्युम्न के भी अन्य अनेक विवाह होते हैं। उसको अनिरुद्ध नामक पुत्र को प्राप्ति भी होती है।
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