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________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य पांचवां सर्ग पुत्र के अपहरण से दुःखित रुक्मिणी विलाप करने लगती है। समस्त द्वारका में तहलका-सा मच जाता है। धनी खोज की जाती है किंतु बालक के विषय में कोई सूत्र हाथ नहीं लगता है। सीमन्धर स्वामी का समवसरण जहां संयोजित था वहाँ नारद जी विदेह जाते हैं। वे स्वामी जी से रुक्मिणी के पुत्र के विषय में प्रश्न करते हैं और उन्हें उत्तर मिलता है कि धूमकेतु ने पूर्वभव के वैरवश उसका अपहरण कर लिया है। कालसंवर के राजपरिवार में बालक बड़ा हो रहा है और १६ वर्ष पश्चात् वह माता-पिता के पास लौट आएगा। केवली स्वामी प्रद्युम्न के पूर्वभव के वृत्तान्त भी सुनाते हैं। पूर्वभव की यह कथा सातवें सर्ग में आयी है। छठा सर्ग अयोध्या नगरी में राजा अरिंजय का शासन है । उसकी रानी प्रतिकर के दो पुत्र हैं- पूर्णभद्र और मणिभद्र। राजा मुनि के उपदेश से प्रति बुद्ध होकर विरक्त हो जाता है और पुत्र को राज्यासन सौंप देता है। दो वणिक् पुत्र भी श्रावक धर्म स्वीकार करते हैं और मुनि द्वारा कुत्तियों एवं मातंग की पूर्वभव की कथाएं सुनकर वे भी दीक्षित हो अन्ततः स्वर्गलाभ करते हैं। सातवाँ सर्ग कौसलनगरी का राजा हेमनाभ है । इसके दो पुत्र मधु और कैटभ हैं । मधु को राजा और कैटभ को युवराज बनाकर राजा अपनी रानी सहिता संन्यास ग्रहण कर लेता है। मधु कैटभ दोनों अपार पराक्रमी होते हैं । सभी राजा महाराजा उनके चरणों में नतमस्तक रहते हैं। भीम उनके राज्य में प्रवेश कर उत्पात मचाता है, नगर जला देता है और प्रजा को कष्ट देता है। अस्तु, मधु भीम पर आक्रमण करता है। मार्ग में अन्य राजा हेमरथ उसका समर्थन व स्वागत करता है और मधु हेमरथ की रूपवती रानी पर आसक्त हो जाता है, किंतु मंत्रियों के परामर्शानुसार वह पहले भीम का वध करता है और लौटते समय हेमरथ की रानी को भी अपने साथ ले आता है। प्रियाविहीन राजा हेमरथ देवयोनि में जाते हैं । स्वर्ग से च्युत होकर मधु का जीव ही प्रद्युम्न रूप में जन्म लेता है और कैटभ का जीव जाम्बवती के पुत्र के रूप में जन्म लेता है । राजा हेमरथ का जीव धूमकेतु के रूप में जन्मता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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