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________________ ४१ संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य श्रीकृष्ण को छवि को अपने हृदय में अंकित कर लिया और मन ही मन उन्हें पति मान लिया। भोष्मपुत्र रुक्मिकुमार बहन का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। इस परिवर्तित परिस्थिति में वह शिशुपाल को विवाहार्थ निमंत्रित करता है। इस तथ्य को सूचना देते हुए नारद जी ने श्रीकृष्ण को रुक्मिणी हरण कर लेने का परामर्श दिया। तृतीय सर्ग श्रीकृष्ण बलराम कुण्डिनपुर के उद्यान में पहुंचते हैं। उस समय कामदेवार्चनार्थ राजकुमारी रुक्मिणी भी उद्यान में आयी थी। श्रीकृष्ण उसका अपहरण कर लेते हैं। रुक्मि और शिशुपाल द्वारा पीछा किए जाने पर वे शिशुपाल का वध कर देते हैं और रुक्मिणी को द्वारका ले जाकर उसके साथ पाणिग्रहण करते हैं। इसी सर्ग में एक कौतुक और होता है, श्रीकृष्ण श्वेत वस्त्रों में सज्जित रुक्मिणी को उपवन में बैठा देते हैं और स्वयं उसके समीप ही छिप जाते हैं। सत्यभामा उपवन में आती है और इस श्वेतवस्त्रवृता अलौकिक सुन्दरी को देवांगना समझकर उसकी अर्चना करती है । वह वरदान माँगती है कि श्रीकृष्ण उसी के हो जाएं और रुक्मिणी की उपेक्षा करने लग जाएँ। तत्काल श्रीकृष्ण प्रकट हो जाते हैं और उनके मन्द-मन्द हास से यह रहस्य भी प्रकट हो जाता है कि वह देवांगना रूपी स्वयं रुक्पिणो ही है । इससे दोनों सपत्नियों में घनिष्ठ मैत्री निर्माण हो जाती चौथा सर्ग श्र कृष्ण और बलशम की उपस्थिति में रुक्मिणी और सत्यभामा दोनों वचनबद्ध हो जाती हैं कि इनमें से जो भी पहले पुत्रवती होगी वह अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर दूसरी का सिर मुण्डित करवा देगी। संयोग से रुक्मिणी को पहले पुत्र प्राप्ति हो जाती है। किंतु, जन्म के ५वें दिन ही धूमकेतु असुर द्वारा उसका अपहरण कर लिया जाता है और वह उस शिशु को वातरक्षक गिरि पर आरक्षित अवस्था में छोड़ जाता है। विद्याधर राज कालसंवर इस शिशु को अपना लेता है और घोषणा कर देता है कि उसकी रानी कनकमाला ने राजकुमार को जन्म दिया है। राजकुमार का नाम प्रद्युम्न रखा जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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