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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य पर मैं इस अध्याय में काव्य-विधा की दृष्टि से निम्नलिखित रूप ले रहा हूं जो क्रमशः इस प्रकार हैं।
__ चरित नामान्त महाकाव्य, इतर नामान्त महाकाव्य, सन्धान काव्य तथा अनेकार्थ पौराणिक महाकाव्य । चरित महाकाव्य
इस विधा में मेरे अध्ययन में केवल एकमात्र कृति उपलब्ध हुई है जिसका मेरे अध्येतव्य विषय से संबंध है। अन्य जैन रचनाकारों की अन्य चरित्रों पर कई रचनाएं उपलब्ध हैं पर मेरे लिए उनका अध्ययन मेरी परिधि से बाहर होने से मैंने उनको अपने अध्ययन का विषय नहीं बनाया। चरित महाकाव्यों की संस्कृत साहित्य में एक अपनी पद्धति रही है। जैन संस्कृत साहित्यकारों ने चरित्र विश्लेषण की अपनी एक मौलिक पद्धति को अपनाया
(१) प्रद्युम्न चरित
लेखक ने प्रद्युम्न चरित के साथ पूरा न्याय किया है, प्रद्युम्न चरित का लेखक लाटवा गड संघ के सिद्धांतों के पारगामी आचार्य जयसेन मुनि के शिष्य गुणाकर सेन और उनके शिष्य महासेन सूरि ही इस महाकाव्य के लेखक थे। महासेन सूरि सिन्धुराज मुंज के द्वारा सम्मानित किए गए, इनके महामात्य पर्पट ने भी इनके चरणों की पूजा करके इनका सम्मान किया था तथा इस कृति को रचने की प्रेरणा भी दी थी। प्रद्युम्न चरित के प्रत्येक सर्ग के अन्त में आने वाली पुष्पिका में इस प्रेरणा का उल्लेख मिलता है।
इतिहास के अनुसार इस कति का रचनाकाल वि० सं० १०३१ (९७४ ई०)अनुमानाश्रित है। प्रमाण में यह बतलाया जाता है कि राजा मुंज ई० सं० ६७४ में अर्थात् वि० सं० १०३१ में परमारों की गद्दी पर आसीन हुआ था। मुंज के दो दान पत्र भी मिलते हैं जो इसी समय के हैं। कहा जाता है कि ई० सं० ६६३-६६८ के बीच तैलप्पदेव ने मुंज का वध किया था।
२. 'श्री सिंधुराजसत्कमहामहत्वश्रीपप्पटगुरोः पण्डितश्रीमहासेनाचार्यस्य कृते' कवि
आचार्य महासेन सूरि पप्पट के गुरु थे, ऐसा इससे पता चलता है। ३. प्रद्युम्न चरित, सं० नाथूराम प्रेमी, प्र० हिंदी ग्रंथ, रत्नाकर, बंबई
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