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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य
जैन संस्कृत प्रतिनिधिक कृष्ण काव्य एक अध्ययन भूमिका
अब तक हमने संस्कृत साहित्य में जैन कृष्ण काव्यों के योगदान पर ऐतिहासिक दृष्टि से विवेचन प्रस्तुत किया है, पर जिन प्रातिनिधिक जैन कृष्ण काव्यों को हमने अपने अध्यनार्थ लिया है उनका विशेष अध्ययन अब यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है ।
रविषेणाचार्य कृत "पद्मपुराण चरित" को चरित काव्य की दृष्टि से संस्कृत जैन काव्य का आदि ग्रन्थ माना गया है । जिनसेनाचार्य ने अपने हरिवंश पुराण की भूमिका में बतलाया है कि पद्मपुराण में रामचरित विवेचित है । इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० ८४० में की गयी थी। पर श्रीकृष्ण, चरित परंपरा को लेकर आचार्य जिनसेन का "हरिवंश पुराण" ही जैन संस्कृत कृष्ण काव्य का आदि ग्रंथ माना जाता है। मेरे इस कथन की पुष्टि श्री नाथूराम प्रेमी ने अपने प्रकाशित ग्रन्थ जैन साहित्य और इतिहास ग्रन्थ में कर दी है। 1
संस्कृत साहित्य में काव्य की अनेक विधाएं मिलती हैं जो अपनी सरसता व काव्य के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं । इनका प्रभाव जैन साहित्यकारों पर भी पड़ा। उन्हीं के अनुकरण पर जैन लेखकों ने भी संस्कृत भाषा में भिन्न-भिन्न काव्य-विधाओं में श्रीकृष्ण साहित्य की सर्जना की । यहाँ
१. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ४२० - २८, ले० नाथूराम प्रेमी
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