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________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य पूर्वभव, कंस जन्म, वसुदेव का भ्रमण, अनेक कन्याओं के साथ उनका पाणिग्रहण, कृष्ण जन्म, कंस-वध, द्वारका निर्माण, कृष्ण की अग्र महिषियां, प्रद्युम्न जन्म, जरासंध के साथ युद्ध, नेमिनाथ और राजीमती के विवाह की चर्चा आदि अनेक प्रसंग चित्रित हुए हैं। इन मुख्य कथासूत्रों के साथ-साथ कतिपय गौण प्रसंग भी इस कृति के विषय बने हैं। जैसे-कृष्ण बलदेव के पूर्वभव, पाण्डवों का वर्णन, द्रौपदीहरण व श्रीकृष्ण द्वारा उसका उद्धार, गजसुकुमार चरित, थावच्चापुत्र का वृत्तांत, श्रीकृष्ण के देहावसान पर बलदेव का विलाप और नेमिनाथ का वर्णन आदि ।17 अस्तु, उपर्युक्त कुछ ऐसी रचनाएं हैं जो स्वतन्त्र व प्राकृत में रचित हैं और जिनसे श्रीकृष्ण के जीवन और चरित्र पर प्रकाश पड़ता है। ये आगमेतर साहित्य के अंतर्गत परिगणित होती है। आगमेतर साहित्य के अन्तर्गत ही आगमों की टीका, भाष्यादि व्याख्यात्मक ग्रन्थ भी माने जाते हैं। इनका सम्बन्ध इनके मूल आगम ग्रन्थों से ही है और रचनाकार उसी सीमा में बद्ध रहे हैं । अतः इन्हें स्वतन्त्र साहित्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती । ऐसे व्याख्यात्मक, साहित्यिक भाग में भी कतिपय महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ द्रष्टव्य हैं, जिनमें श्रीकृष्ण चरित की महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है। इस प्रकार की उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कतिपय रचनाएं हैं -- (१) कथाकोष प्रकरण। (२) कथारत्न कोष। (३) आख्यानमणि कोष आदि । इन रचनाओं में श्रीकृष्ण जीवन सन्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रसंग की सामग्री यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है। इस तरह यह देखा जा सकता है कि आगम जैन कृष्ण साहित्य में समग्र कृष्ण जीवन चरित में से कृष्ण जीवन के कुछ प्रमुख प्रसंग ही जैन कृष्ण साहित्य के विवेच्य विषय बने हैं। दूसरे और तीसरे अध्याय १७. कण्ह चरित-ले० देवेंद्र सूरि, प्र. केशरीमल संस्था, रतलाम, सन् १९३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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