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________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य जिसके हृदय में शक्ति नहीं, उसके शस्त्र किस काम में आएंगे ? अपने शस्त्र होने पर भी क्षोण शक्ति वाले पुरुष मृत्यु को प्राप्त होते हैं ।13 पढमं वि आवयाणं चिन्तयम्वो नरेण पडियारो। न हि गेहम्मि पलित अवहं खणि तरइ कोई । -विपत्ति के आने के पूर्व ही उसका उपाय सोचना चाहिए। घर में आग लगने पर क्या कोई कुआ खोद सकता है ? (५) उपदेशमाला (पुष्पमाला) प्रकरण ___ मलधारी आचार्य अपनी इस एक अन्य कृति के लिए भी प्रसिद्ध है, कृति के तप द्वार में वासुदेव के चरित का वर्णन हुआ है 114 प्रस्तुत कृति विषय, शैली और कवित्व की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। दान, शोल, तप और भावना इन ४ विषयों पर कवि का विवेचन अधिक मानिक दृष्टांतों के द्वारा विवेचित है। सुपात्रदान का फल अनेक दृष्टांतों द्वारा प्रतिपादित किया गया है । शील द्वार में शील माहात्म्य के उदाहरण दिए गए हैं । तपद्वार में वसुदेव, दृढ़प्रहारो, विष्णुकुमार और स्कंदक आदि के चरित्र हैं । भावना के अंतर्गत सम्यकत्वशुद्धि आदि १४४ द्वारों का प्ररूपण है । इंद्रियज के उपदेश में ५ इंद्रियों के स्वरूप को समझाया गया है। कषाय निग्रह द्वार में कषायों के स्वरूपों का प्रतिपादन किया गया है । कुलवास-लक्षण द्वार में गुरु के गुणों का प्रतिपादन करते हुए शिष्य को विनीत बनने का उपदेश दिया गया है । उसे कहा गया है कि गुरु की आज्ञा का पूर्ण रूप से प्रतिपालन करना चाहिए। गुरु के कुपित होने पर भी शांत रहना चाहिए । दोषविघटन-लक्षण द्वार में आगम,श्र त, आज्ञा, धारणा और जीत के भेदों से ५ प्रकार व्यवहार के बतलाये गये हैं । यहाँ आर्द्र कुमार का उदाहरण द्रष्टव्य है । विराग-लक्षण द्वार में लक्ष्मो को कुलटा नारी को उपमा दी गयी है। १३. भवभावना, प्र० ऋषभदेवजी केशरीमल जी जैन श्वे० संस्था, रतलाम १४. उपदेशमाला प्रकरण, प्र० ऋषभदेव जी केशरीमलजी संस्था, रतलाभ सन् १९३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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