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________________ ३३ प्राकृत आगमेतर जैन श्रीकृष्ण साहित्य किन्तु उक्त वृत्ति में अम्म और आम्रदेव के अभिन्न होने का कोई आधार नहीं मिलता है। इस ग्रन्थ की अनुमानतः १६वीं शताब्दी की हस्तलिखित प्रति खम्भात के विजयनेमिसूरि शास्त्र संग्रह में उपलब्ध है।12 (४) भवभावना ___ मलधारी आचार्य हेमचन्द्र सूरि द्वारा रचित इस ग्रन्थ का रचनाकाल विक्रम संवत् ११७० सन् ११२३ माना जाता है, ग्रन्थकर्ता ने इसमें १२ भावनाओं का विवेचन किया है । कृति में कुल ५३१ गाथाएं वर्णित हैं । इसमें हरिवंश का वर्णन सविस्तार मिलता है । कंस वृत्तांत, वसुदेव चरित, देवकी वसुदेव विवाह, कृष्णजन्म, कंस वध, नेमिनाथ चरित आदि विविध प्रसंग इस ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषय हैं । उक्त कृति में हरिवंश की उत्पत्ति को दस आश्रयों में गिनाया गया है । इस प्रसंग पर दशाह राजाओं का उल्लेख है। कंस का वृत्तांत, वसुदेव का चरित्र, चारुदत्त की कथा, देवकी का विवाह, कृष्ण का जन्म, नेमिनाथ का जन्म, कंसवध, राजीमती का जन्म, नेमिनाथ के वैराग्य आदि का वर्णन करते हुए कवि ने स्थान-स्थान पर अपनी काव्य प्रतिभा का भी परिचय दिया है। कथानक में भरत चक्रवर्ती को आर्यवेदों का प्रवर्तक, तथा मधुपिंग और पिप्पलाद को अनार्यवेदों का कर्ता बताया गया है। वसुदेव ने इन दोनों का अध्ययन किया । इसमें वाचा, दृष्टि, निजूह (मल्लयुद्ध) और शस्त्र इन चार प्रकार के युद्धों का उल्लेख है। मल्लों में निजूह-युद्ध, वादियों में वाकयुद्ध, अधम जनों में शस्त्रयुद्ध तथा उत्तम रुषों में दृष्टियुद्ध होता है। रैवतक पर्वत पर वसन्तत्रीडा, जलक्रीडा आदि का सुन्दर चित्रण है । १२ भावनाओं का इसमें सविस्तार से वर्णन करते हए कवि ने अनेक सुभाषित दिए हैं जिनमें से कुछ द्रष्टव्य हैं जस्स न हिययंमि बलं कुणंति किं हंत तस्स सत्थई । निअसत्थेणऽवि निहणं पावंति पहीणमाहप्पा । ११. प्राकृत टैक्ट सोसायटी वाराणसी-आख्यानमणिकोश की भूमिका, पृ० ४२ १२. डॉ. गुलाबचन्द चौधरी, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ६, पृ० ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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