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________________ ३१ प्राकृत आगमेतर जैन श्रीकृष्ण साहित्य (२) चउप्पन्नमहापुरिस चरियं - आचार्य शीलांक द्वारा रचित यह एक महत्वपूर्ण कृति है। इसमें ६३ शलाकापुरुषों में से ६ प्रतिवासुदेवों को छोड़कर ५४ महापुरुषों के जीवनचरित वर्णित हुए हैं। ६ वासुदेवों के वर्णन के अंतर्गत ही प्रतिवासुदेवों को भी सम्मिलित कर लिया गया है। इसका रचनाकाल सन् ८६८ बताया जाता है। इसके ४६-५०-५१वें अध्याय में अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण वासुदेव के चरित वर्णित हुए हैं। ग्रन्थ की भाषा साहित्यिक प्राकृत है। यहाँ यह ध्यान में रखने योग्य है कि जैन साहित्य में महापरुषों की मान्यता के स्वरूप को लेकर दो विचार धाराएं प्रचलित रही हैं। प्रथम विचार-धारा में प्रतिवासुदेवों की वासुदेवों के साथ गणना करके ५४ शलाका पुरुष मानती है, और दूसरी विचारधारा प्रतिवासदेवों की गणना स्वतंत्र रूप से करके ६३ शलाकापुरुषों को मान्यता प्रदान करती है। प्रस्तत कति में ५४ शलाकापुरुषों के जीवन-सूत्र ग्रथित किए गए हैं। रचनाकार शीलांक आचार्य निवृत्तिकुलीन मानदेवसूरि के शिष्य थे। इनके दूसरे नाम जैसे शोलाचार्य और विमलमति भी उपलब्ध होते हैं। . प्रस्तुत काव्य में भगवान ऋषभदेव, भरतचक्रवर्ती, शान्तिनाथ, मल्लिस्वामी और पार्श्वनाथ के चरित पर्याप्त विस्तार पूर्वक वर्णित किए गए हैं। प्रस्तुत चरित काव्य की विशेषताओं को इस प्रकार देखा जा सकता (१) इसमें सूर्योदय, वसन्त, वन, सरोवर, नगर, राजसभा, युद्ध, विवाह, विरह, समुद्रतल, आदि के सुन्दर काव्यात्मक वर्णन मिलते हैं। (२) महाकाव्य की गरिमामयी शैली में वस्तुवर्णन है।। (३) सांसारिक संघर्ष के बीच, जीवन के उन परमतत्वों का विवेचन किया गया है जिनके कारण जन्म-मरण, शुभाशुभ कर्मों का आवागमन बना रहता है। (४) पात्रों का चरित्र चित्रण सुन्दर है। (५) प्रसंगवश इसमें विबुधानंद नामक एकांकी नाटक भी निबद्ध है। ६. प्राकृत-ग्रंथ-परिषद वाराणसी ई० सन् १९६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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