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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य किया गया है । उनका शारीरिक बल इतना विपुल था कि वे सुगमता के साथ महारत्न वज्र को भी चुटकी से मसलकर चूर्ण कर देते थे। महापुरुषों का आभ्यंतर सौन्दर्य
बाह्य एवं आभ्यंतरिक सौन्दर्य अन्योन्याश्रित हुआ करता है । महापुरुषों में भव्य आंतरिक सौंदर्य होता है। इसकी प्रतिच्छवि स्वरूप उनका बाह्य व्यक्तित्व भी सौन्दर्य सम्पन्न एवं आकर्षक होता है। ये ओज तेज से युक्त व परमशक्ति सम्पन्न होते हैं । जैन मान्यता भी इस तथ्य की समर्थक रही है। यही कारण है कि इस परम्परा में मान्य सभी विशिष्ट पुरुष आकर्षक व प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले हैं। प्रज्ञापना सूत्र (२३) के अनुसार जैन दृष्टि से जो ६३ श्लाघनीय पुरुष (शलाका पुरुष) हुए हैं वे सभी अत्युत्तम शारीरिक संस्थान वाले थे। 'हारिभद्रीयावश्यक' में उनके शरीर की प्रभा को निर्मल स्वर्णरेखा के समान वणित किया गया है। जैन परंपरा में ६३ शलाका पुरुषों में श्रीकृष्ण की भी गणना होती है। वे नवम वासुदेव हुए हैं।
शलाका पुरुषों की भांति ही श्रीकृष्ण का शरीर मान, उन्मान और प्रमाण में पूरा सुजात और सर्वांग सुन्दर था। वे लक्षणों और गुणों से युक्त थे। उनका शरीर दस धनुष लम्बा था। वे बड़े ही कान्त, सौम्य, सुभग स्वरूप वाले अत्यन्त प्रियदर्शी थे। वे प्रभल्म, धीर और बिनयी थे। वे सुखशील थे, किन्तु प्रमादी नहीं अपितु उद्योगी प्रवृत्ति के थे। उनकी वाणी गंभीर, मधुर और स्नेहयुक्त थी, और वे सत्यवादी थे। उनकी गति श्रेष्ठ गजेन्द्र-गति सी लगती थी। उनका मुकुट कौस्तुभ मणि जटित था। उनके कानों में कुंडल और वक्ष पर एकावली सुशोभित रहती थी। वे धनुर्धर थे। वे शंख चक्र गदा शक्ति और पद्म धारण करते थे। वे उच्च गरुड़ ध्वजा के धारक थे । 'प्रश्नव्याकरण' के एक उल्लेख के अनुसार श्रीकृष्ण शत्रुओं का मर्दन करने वाले, युद्ध में कीति प्राप्त करने वाले, अजित और अजितस्थ थे। एतदर्थ वे महारथी भी कहलाते थे। श्रीकृष्ण सर्वगुण संपन्न, श्रेष्ठ चरित्र वाले, दयालु, शरणागत-वत्सल, धर्मात्मा, कर्तव्यपरायण, विवेकशील और नीतिवान थे।
१. प्रश्नव्याकरण : अध्याय ४, पृ० १२१७
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