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प्राकृत आगमेतर जैन श्रीकृष्ण साहित्य
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स्रोत
इस प्रकार जब भगवान महावीर ने श्रीकृष्ण के जीवन की विभिन्न घटनाओं का उल्लेख अपने उहदेशों के अन्तर्गत, अपने ही ढंग से किया तो उनके प्रवचनों में श्रीकृष्ण के जीवन का कोई क्रमबद्ध वृत्तांत उभरकर प्रकट नहीं हो सकता था। जहां जिस सिद्धांत के स्पष्टीकरण एवं प्रतिपादन के लिए या पुष्टि के लिए भगवान ने श्रीकृष्ण जीवन की जिस घटना का प्रयोग वांछनीय समझा और अनुभव किया, उसे उपयुक्त स्थान जैन कथा में दिया। कालांतर में भगवान के शिष्य गणधरों ने भगवान के उपदेशों को संग्रहीत किया, उन्हें लिखित रूप देने का प्रयास भी किया। ये लिखित अलिखित रूप ही जैन आगम हैं। उल्लेख विशृखलनीय
स्पष्ट है कि जैन आगम ग्रन्थों में श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों को यद्यपि अति महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त अवश्य ही हुआ है किन्तु ये उल्लेख विशृंखलित रूप में हैं । आगमों में श्रीकृष्ण के जीवन चरित का कोई क्रमिक विकास दृष्टि गोचर नहीं होता । न ही यह कहा जा सकता है कि आगमों में श्रीकृष्ण के जीवन को सम्पूर्णतः ग्रहण कर लिया गया है। केवल प्रतिपाद्य विषयों में सहायक रहने की क्षमता वाले प्रसंग ही इसमें समाविष्ट हुए हैं। आगमेतर ग्रन्थों (परिवर्ती ग्रंथों) में श्रीकृष्ण जीवन की इन बिखरी-बिखरी घटनाओं को क्रमिक और व्यवस्थित रूप दिया गया है। यथावश्यकतानुसार शून्य स्थलों की पूर्ति का भी मूल्यवान उपक्रम हुआ है । परिणामतः इन परवर्ती ग्रन्थों में श्रीकृष्ण चरित्र जैसी कोई वस्तु मेरे दृष्टिगत होने लगी है। श्रीकृष्ण के भव्य चरित्र की एक झांकी प्रस्तुत होने लगी है। इनके माध्यम से श्रीकृष्ण सम्बन्धी जैन मान्यता स्पष्टता के साथ अभिव्यक्त हुई। यह मान्यता इस पक्ष में पायी जाती है कि श्रीकृष्ण एक अत्यन्त बलशाली, पराक्रमी, तेजस्वी महामानव थे। वैदिक परम्परा के श्रीकृष्ण के अवतारी और चमत्कारी दिव्य रूप को जैन मान्यता ने स्वीकार्य नहीं समझा। जैन श्रीकृष्ण साहित्य में उल्लेखित सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक रूप एवं मूलाधार को स्वीकारते हुए जैन परम्परा में श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन बड़े ही व्यापक रूप में हुआ है। वे सर्वत्र शक्तिशाली रूप में वर्णित हुए । जैन परम्परानुसार श्रीकृष्ण गुणशील, सदाचारी, ओजस्वी, वर्चस्वी एव यशस्वी महापुरुष थे। उन्हें जैन ग्रन्थों में अमोघबली, अतिबली, महाबली, अप्रतिहत और अपराजित रूप में चित्रित
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