________________
जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
२०
वासुदेव के रूप में प्रतिष्ठित श्रीकृष्ण का विस्तार से विवेचन है। प्रति वासुदेव का हनन उनके द्वारा किया गया है । यह ठीक अवतारी पुरुष कृष्ण से मिलता है । (३) ज्ञाताधर्म कथा में २२ वें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में बतलाया गया है। पांडव भी इसमें चर्चित हैं। कुन्ती पांडवों की जननी और श्रीकृष्ण की बुआ हैं। थावच्चापुत्र प्रव्रज्या ग्रहण करते हैं। (४) अन्तकृद्दशांग में द्वारकावैभव, श्रीकृष्ण वासुदेव तथा गौतमकुमार की दीक्षा तथा श्रीकृष्ण पुत्र गजसुकुमार की कथा आई है। अंत में द्वारका विनाश और श्रीकृष्ण का देहत्याग भी विवचित है। कृष्ण एक शक्तिशाली राजा और परदुःखकातर बतलाये गए हैं। उनके भावी जन्म पर प्रकाश डाला गया है। (५) प्रश्नव्याकरण ग्रंथ में दो खंड हैं । उत्तरखंड में ५ संवर द्वार हैं। पूर्वखंड में रुक्मिणी और पद्मावती से विवाह करने के लिए जो युद्ध श्रीकृष्ण को करने पड़े उनका विवेचन है। श्रीकृष्ण एक अर्ध चक्रवर्ती राजा बताये गए हैं तथा उनकी कुछ बाललीलाएं जैसे रिष्ट बैल और कालिय नामक विषैले नाग की हत्या, पूतना मर्दन, कंस हनन और जरासंध वध का वर्णन तथा उनमें विद्यमान गुणों का विवेचन और उनकी रानियों का वर्णन तथा उनकी महानता दिखाई है । (६) निर. यावलिका में रैवतक पर्वत पर नेमिनाथ का आगमन और द्वारकाधिपति श्रीकृष्ण वासुदेव का वर्णन तथा नेमिनाथ की उपदेश सभा में श्रीकृष्णागमन दिया गया है। श्रीकृष्ण की धर्मप्रियता और २२ वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के प्रति श्रद्धा का वर्णन तथा राजा बलदेव और उनकी रानी रेवती के पुत्र निषधकुमार का नेमि की सेवा में जाना और प्रव्रज्या ग्रहण इत्यादि विवेचन है। (७) उत्तराध्ययन में भगवान महावीर का उपदेश संकलित है। कुल ३६ अध्ययनों में से २२ वें अध्ययन में श्रीकृष्ण कथा के सूत्र हैं। श्रीकृष्ण के द्वारा अरिष्टनेमि के विवाहोत्सव का प्रबंध, बारातियों के आहार के लिए जुटाये गये पशुपक्षियों को देखकर नेमी को वैराग्य उत्पन्न होना, रैवतक पर्वत पर तपस्या के लिए जाना, राजीमती द्वारा नेमी से याचना और श्रीकृष्ण का जन्म सोरियपुर में हुआ। यह तथ्य भी हमारे हाथ लगता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org