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________________ प्राकृत जैन आगम श्रीकृष्ण साहित्य १६ प्रथम अध्ययन निषेधकुमार का है, जो कृष्ण के बड़े भ्राता राजा बलदेव तथा रेवती के पुत्र थे । निषध कुमार भगवान अरिष्टनेमि की सेवा में प्रवज्या ग्रहण कर आत्म कल्याण करते हैं । यह उपांग सूत्र है । (७) उत्तराध्ययन इस आगम ग्रन्थ में भगवान महावीर के अंतिम समय महानिर्वाण काल में दिए गए उपदेश संकलित हैं । उत्तराध्ययन में कुल ३६ अध्ययन हैं, और इसके २२ वें अध्ययन में श्रीकृष्ण कथा के सूत्र मिलते हैं । श्रीकृष्ण द्वारा अरिष्टनेमि के विवाहोत्सव का प्रबंध किया जाना, विवाह में एकत्रित अतिfart के आहार हेतु एकत्रित मूक पशुओं की पुकार सुनकर अरिष्टनेमि का विरक्त हो जाना, रैवतक पर्वत पर जाकर उनका तपस्या करना आदि प्रसंग विस्तार से विवेचित हैं । इस अध्ययन से यह तथ्य भी प्रकट होता है कि श्रीकृष्ण का जन्म सौरियपुर में हुआ था । 22 कृष्ण के माता-पिता, उनका वासुदेव राजा होना, नेमि के लिए उनके द्वारा राजीमती की याचना करना आदि उल्लेख हैं । निष्कर्ष मैंने इस अध्याय में जैन प्राकृत श्रीकृष्ण साहित्य के कतिपय ग्रंथों को लेकर अपना अनुशीलन प्रस्तुत किया है। इसमें क्रमशः सात ग्रंथ हैं । (१) स्थानांग में श्रीकृष्ण सम्बन्धी कुछ प्रसंग और उनकी आठ पटरानियों का उल्लेख मिला है । (२) समवायांग में ५४ उत्तमपुरुषों का विवेचन है । इनमें वासुदेवे राया होत्था जाव पसासेमाणे विहरई । वहिदसाओ, - पृ० ७१२ संपादक - पुफ्फभिक्खू, प्रकाशक सूत्रागमप्रकाशन समिति, गुडगांव ( पंजाब ) | २१. सोरियपुरम्मिनयरे आसिराया महढिए । वसुदेवत्ति नामेणं रायलक्खणसंजु ॥ तस्स भज्जा दुवे आसि रोहिणी देवई तहा । तास दोन्हं दुवे पुत्ता इट्ठा रामकेसवा । वज्जरिसहसंघयणे समचउरंसो झसोयरो | तस्स राईमई कन्नं भज्जं जायई केसवो ॥ उत्तराध्ययन सूत्र अ० २२, संपादक - स्वयंशोधकर्ता ( राजेन्द्रमुन्द्रि ) गाथा - १, २, ३, ६, ८, १०, ११,२५ व २७ में कृष्ण संबंधी उल्लेख उपलब्ध हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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