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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
(५) प्रश्नव्याकरण
यह दशम अंग ग्रन्थ है । ५ धर्म द्वार तथा ५ अधर्मद्वार के रूप में प्रश्न व्याकरण के दो खंड हैं । पूर्वखण्ड में ५ आस्रवद्वार हैं और उत्तरखंड में संवरद्वार हैं जिनकी संख्या भी ५ हैं । रुक्मणी एव पद्मावती के साथ विवाह के लिए श्रीकृष्ण को जो युद्ध करने पड़े उनका वर्णन प्रश्नव्याकरण के पूर्व खण्ड के चतुर्थ आस्रवद्वार में किया गया है । 19 (क)
कृष्ण के चरित्र का श्रेष्ठ अर्द्ध चक्रवर्ती राजा के रूप का, उनकी रानियों, पुत्रों तथा परिवारजनों का वर्णन तथा श्रीकृष्ण को चाणूर मल्ल, रिष्टबैल तथा काली नामक महान विषैले सर्प का हन्ता, यमलार्जुन के नाश करने वाले, महाशकुनि एवं पूतना के रिपु, कंसमर्दक, जरासन्ध नष्टकर्त्ता आदि उनके विविध गुणों को दर्शाया गया है । और, इस प्रकार उनके व्यक्तित्व के महानता के दर्शन इस आगम के द्वारा हमें दिखलाई देते हैं । 19 (ख)
(६) निरयावलिका
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इसमें ५ वर्ग हैं । ५ वर्गों में ५ उपांग अन्तर्निहित हैं । पाँचवे उपाँग वृष्णीदशा के १२ अध्ययन हैं । प्रथम अध्ययन में द्वारकाधिपति वासुदेव श्रीकृष्ण का वर्णन मिलता है | चित्रित प्रसंग उस समय का है जब भगवान नेमिनाथ का आगमन रैवतक पर्वत पर होता है और श्रीकृष्ण उनकी उपदेश -सभा में जाते हैं । इस प्रसंग में श्री कृष्ण की धर्मप्रियता और भगवान के प्रति श्रद्धा की भावना अभिव्यक्त हुई है 120
१६. ( क ) भुज्जो भुज्जो बलदेव- वासुदेवा य पवरपुरिसा महाबलपरवकमा, महाधणु वियट्ठका, महासत्तसागरा दुद्धरा । — प्रश्नव्याकरणसूत्र चतुर्थ अध्याय, संपादक - अमरमुनिजी, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा ।
(ख) मेहुणसण्णा संपगिद्धाय मोहभरिया सत्थेहि हणंति एक्कमेक्कं । विसयविस उदीरएसु अवरे परदारेहि हम्मति XXX मेहणमूलं य सुव्वए तत्थ तत्थ वत्तपुव्वा संगामा जणक्खयकरा सीयाए दोवईए कए, रुप्पिणीए माईए ।
- प्रश्न- व्याकरण सूत्रचतुर्थ अध्ययन, पृ० 407
संपादक वही । २०. एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था, दुवालस जोयणायामा जावपच्क्चक्खं देवलोयभूया । तत्थणं बारवईए नयरीए कण्हे नामं
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