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________________ प्राकृत जैन आगम श्रीकृष्ण साहित्य १७ पर पांडवों और श्रीकृष्ण के मध्य पारिवारिक सम्बन्ध बताया गया है तथा अमरकंका जाने का वर्णन भी प्राप्त है । 17 (४) अन्तकृद्दशांग इस आठवें अंग आगम में अंतकृत् केवलियों की कथाएं वर्णित हैं । ग्रन्थ अनेक अध्ययनों में विभक्त है और अध्ययनों के आठ वर्ग (समूह) हैं । प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में द्वारका का वैभव एवं गौतम की दीक्षा, तृतीय वर्ग अष्टम अध्ययन में श्रीकृष्ण के अनुज गजसुकुमार की कथा है । पाँचवे वर्ग के प्रथम अध्ययन में वैभवपूर्ण द्वारका के विनाश का और श्रीकृष्ण के देहत्याग का वृत्तान्त है । द्वारावती नगरी के शक्तिशाली राजा के रूप में श्रीकृष्ण को बतलाया गया है । कृष्ण के भावी जन्म विषय वृत्तांत, कृष्ण की पर दुःखकातरता का चित्रण हुआ है । 18 यथा एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईनामं नयरी होत्या । दुबालसजोयणायामा नव जोयणवित्थिष्णा । -- प्रथम वर्ग पृ० ० ६ तत्थणं बारबईए नयरीए कण्हे नाम वासुदेवे राया परिवसई । तणं सा देवई कण्हे वासुदेवं एवं वयासी । एवं खलु अहं पुत्ता । -तृतीय वर्ग पृ० १० तएण से कहे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे व्हाए जाव विभूसिए । - तृतीय वर्ग, पृ० ५६ -- प्रथम वर्ग पृ० १० तर से गयसुकुमाले अणगारे अरया अरिठ्ठनेमिणं अब्भणुष्णाए अरहं । - तृतीय वर्ग पृ० ७७ कहणणं भंते तेणं परिसेणं गयसुकुमालस्य अणगारस्स साहिज्जे दिष्णे ? तणं अरहा अरिट्ठनेमि कण्हं वासुदेवं एवं वयासी । तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव एवं खलु कण्हा । इमोसे बारवइए नयरीए नवजोयण वित्थिन्नाए जाव देवलोगभूयाए सुरग्गिदिवाय-मूलाए विणासे भविस्सइ । - पंचमवर्ग, पृ०६४-६५ १७. वही "ज्ञाताधर्मकथा १८. अन्तकृद्दशांग —— प्रधान संपादक - युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी Jain Education International For Private & Personal Use Only तृतीय वर्ग, पृ ८४ www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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