SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य समवायांग सूत्र में विस्तार से वर्णन किया गया है । वासुदेव प्रतिवासुदेव का आचरण भी वर्णित है । वासुदेव और प्रतिवासुदेव परस्पर प्रतिद्वंद्वी होते हैं। प्रतिवासुदेव अत्याचारी, दुष्ट व प्रजापीडक होता है। वासुदेव द्वारा प्रति वासुदेव का हनन होता है और इस प्रकार पृथ्वी को भारमुक्त किया जाता है। श्रीकृष्ण ने इस प्रकार वासुदेव की भूमिका का पूर्णतः निर्वाह किया है।15 सूत्र २०७ का प्रतिपाद्य विषय यही प्रसंग रहा है। (३) ज्ञातृधर्मकथा (णायधम्मकहाओ) यह भी एक षष्ठ अंगवर्गीय आगम है । दो श्रु तस्कन्ध हैं। पहले स्कन्ध के १६वें अध्ययन में श्रीकृष्ण का वर्णन मिलता है। दूसरे स्कन्ध के पाँचवें अध्ययन में भगवान अरिष्टनेमि के साथ-साथ श्रीकृष्ण के कथा सूत्र भी आए हैं । भगवान का रेवतक पर्वत पर आगमन होता है। वासुदेव (श्रीकृष्ण) भगवान के दर्शनार्थ यादवकुमारों और कुटुम्बीजनों के साथ उपस्थित होते हैं और भगवान के उपदेशों का श्रद्धासहित श्रवण करते हैं। इसी अध्ययन के अन्तर्गत थावच्चापुत्र द्वारा भगवान के सान्निध्य में प्रवज्या ग्रहण का प्रसंग भी विवेचित हुआ है ।16 सोलहवें अध्ययन में पांडवों का वर्णन आया है । इस अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि पांडवों की जननी कुन्ती श्रीकृष्ण की बुआ (अर्थात् वसुदेव की बहन) थी। इस आधार १५. भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए उस्सप्पिणीए ओसप्पिणीए चउवन्नं २ उत्तमपुरिसा उपज्जिति वा, उप्पज्जिस्संति वा, तंजहा- चउवीसं तित्थकरा, बारस चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा । -~-समवायांग ५४वां समवाय, पृ० ८४- संपादक-- पूज्य कन्हैय्यालालजी कमल, आगम अनुयोग प्रकाशन, साण्डेराव (राज.) सन् १९५६ में प्रकाशित । तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवतीनाम नगरी होत्था,...तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसई...... -ज्ञाताधर्मकथा अ० ५, पृ० १५६, १५७, प्रधानसंपादक युवाचार्य मधुकर मुनिजी, प्रका० आगम प्रकाशन समिति, व्यावर ई० सन् १९८१ । (राज.) तएणं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयपामुखैहिं... "वारवई नयरिं मज्झं मज्झेणं निग्गच्छई । तएणं से कण्हे वासुदेवे ते पउमनाभं रायाणं एज्जमाणं पासइ-पृ. ४५ तएणं से कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वयासी --पृ० ५४ तएणं से कण्हे वासुदेवे लवण समुइं मझमज्झेणं वीइवइए, -पृ० ४६१ तएणं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छई। ---पृ० ४६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy