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उपांग
औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, सूर्यप्रज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, निरयावलिका (कल्पिका) कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा ।
मूलसूत्र
सूत्र ।
छेदसूत्र
जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वार सूत्र, आवश्यक
बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रु तस्कंध, निशीथ, महानिशीथ, पंचकल्प ।
प्रकीर्णक
चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्त परिज्ञा, संस्तारक, तंदुल वैचारिक, चंद्रवैध्यक, देवेंद्रस्तव, गणिविद्या, महाप्रत्याख्यान, वीरस्तव, अजीवकल्प, गच्छाचार, मरणसमाधि, सिद्धप्राभृत, तीर्थोद्गालिक, आराधनापताका, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, ज्योतिषकरंडक, अंगविद्या, तिथिप्रकीर्णक, पिण्डनिर्युक्ति, सारावली, पर्यन्तसाधना, जीवविभक्ति, योनिप्राभृत, वृद्धचतुःशरण, जम्बू
पयन्ना ।
चूलिका
अंगचूलिका, वंगचूलिका ।
निर्युक्तियाँ
आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्यन, आचारांग, सूत्रकृतांग, बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रु तस्कंध, कल्पसूत्र, पिण्ड, ओघ, संसक्त ।
शेषसूत्र
कल्पसूत्र, यतिजीतकल्प, श्राद्धजीतकल्प, पाक्षिकसूत्र, खामणासूत्र, वंदित्तसूत्र, ऋषिभाषितसूत्र ।
वर्तमान स्थिति में श्वेतांबर जैनों के विभिन्न संप्रदायों में भी आगमिक साहित्य की संख्या को व प्रामाणिकता को लेकर मतैक्य नहीं है,
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