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________________ प्राकृत जैग आगम श्रीकृष्ण साहित्य (५) सिद्धान्तों के परम मर्मज्ञ कुन्दकुन्दाचार्य ने भी मल आगमों को संलक्ष्य में रखकर कई ग्रंथों का निर्माण किया है जिनमें से प्रवचनसार समयसार, पंचास्तिकाय तथा विभिन्न पाहुड ग्रन्थ समय-समय पर आगम ग्रन्थों का संकलन होता रहा है जो क्रमशः इस प्रकार जाना जा सकता है (१) प्रभु महावीर निर्वाण के १६० वर्ष बाद (ई० पू० सन् २६७ में) स्थलभद्राचार्य के सान्निध्य में हुआ। (२) ई० सन् ३२७-३४० के मध्य मथुरा में स्कन्दिलाचार्य की अध्यक्षता में हुआ। (३) ई० सन् ४५३-४६६ के मध्य वल्लभी में आचार्य देवद्धि गणी क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में हुआ। वर्तमान में उपलब्ध संकलन आचार्य देवधि गणी की अध्यक्षता में आयोजित श्रमण समुदाय (ई० सन ४५३ से ४६६ स्थान वल्लभीनगर काठियावाड) द्वारा किया गया था। अस्तु, श्वेताम्बर संप्रदाय द्वारा मान्य किया जाने वाला आगमिक साहित्य प्रभ महावीर निर्वाण के लगभग एक हजार वर्ष बाद संकलित हुआ था। मूल आगम साहित्य ११ अंगों के रूपों में ही अवशिष्ट समझा जा सकता है । परन्त, मल आगमों के आशय को संलक्ष्य में रखकर अनेकों आचार्यों ने जो ग्रन्थ व टीकाएं लिखी हैं वे आगमिक साहित्य में गिनी जाती हैं। इस प्रकार महावीर निर्वाण के पश्चात आगमिक साहित्य की वृद्धि होती रही। वल्लभी में आयोजित समय में आगमिक साहित्य के ग्रन्थों की संख्या ८४ तक पहुंच गयी थी, जिनके नाम नन्दोसूत्र में निम्न रूप से हैं।13 अंगग्रंथ आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्म-कथा, उपासकदशा, अंतकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र, दृष्टिवाद (विलुप्त हो गया।) १३. जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, ले० देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पृ० १४ प्रकाशक-तारक गुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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