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________________ १२ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य भद्रबाहु के समय यानि ई०पू० ३२५ में मगध में १२ वर्ष का दुष्काल पड़ा था, उस समय ससंघ भद्रबाहु मगध से प्रस्थान कर गये थे। दुभिक्ष के पश्चात् भद्रबाहु की अनुपस्थिति में मुनिवर स्थूलभद्र के सान्निध्य में पाटलीपुत्र नगरी में लुप्त होते जा रहे आगमों की गंभीर समस्या को लेकर मुनि-सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें लुप्त होते जा रहे आगमों को व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया। इस प्रयास क्रम में ११ अंग ही एकत्रित किए जा सके। १२वां दृष्टिवाद तथा १४ पूर्वो का ज्ञान निःशेष हो गए। जो अंग एकत्रित किए गए उन्हें लेकर भी मतभेद खड़े हुए कि ये प्रामाणिक हैं या नहीं। भद्रबाहु के साथ मगध से जो साधुसंघ चला गया उसने प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं किया और इस प्रकार सूत्रों की प्रामाणिकता को लेकर दो भागों में यह संघ विभक्त हो नया। एक वर्ग (श्वेताम्बर संप्रदाय) ११ अंगों को प्रामाणिक मानता है तो दूसरा वर्ग (दिगंबर संप्रदाय) संपूर्ण आगम साहित्य को विच्छिन्न मानता हुआ इसे अस्वीकार करता है । यह संप्रदाय आगमों के आधार पर रचित कतिपय ग्रंथों को आगम साहित्य के रूप में स्वीकार करता है।12। ये ग्रंथ क्रमशः इस प्रकार हैं : (१) षटखण्डागम-इसकी रचना प्राकत भाषा में आचार्य धरसेन के शिष्य आचार्य भूतबलि ने और आचार्य पुष्पदन्त ने वीर निर्वाण की सातवीं शताब्दी में याने ई० सन् दूसरी शताब्दी में की। (२) कषाय प्राभृत-इसके रचनाकार आचार्य गुणधर ने लगभग इसी समय इसकी रचना की। (३) महाबन्ध-यह षट्खण्डागम का ही अंतिम खण्ड है। इसके रचनाकार आचार्य भूतबलि हैं। (४) धवला तथा जयधवला-इनके टीकाकार वीरसेनाचार्य हैं। ये प्रथम दो ग्रंथों की टीकाएं हैं। आर्य-विष्णुनन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, आचार्य-गोवर्धन, भद्रबाहु (दिगंबर परंपरानुसार) देखें-जैनधर्म का मौलिक इतिहास, खण्ठ २ पृ० ३१५ ले० आचार्य हस्तिमलजी महाराज, जयपुर ११. जैन धर्म-पं० कैलाशचन्द शास्त्री, पृ० ४०-५० १२. जैन धर्म-ले० पं० कैलाशचन्दशास्त्री, पृ० २४६,४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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