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________________ २८२ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य पूर्ण भारत में राधा की लोकप्रियता ऐसा नहीं कहा आ सकता है कि भारत के किसी विशेष भाषा में ही राधा के प्रति मान्यता और भक्ति भावना उदित एवं विकसित हुई हो। इस आलोक से तो लगभग सारा देश ही एक साथ जगमगा उठा था । दक्षिण में अलवार जाति के लोगों द्वारा माधुर्य भक्ति भावना का प्रादुर्भाव माना जाता है। ये भक्त गण ५ वीं से ८वीं शती के मध्य हुए थे। आभीर का तमिल में शाब्दिक अर्थ होता है-गोप । और, इस क्षेत्र में राधा को आभीरों की देवी माना जाता है । इस देवी का तमिल नाम "नाप्पिन्नाई" मिलता है। राधा संबंधी विभिन्न अनुसंधानों से निष्कर्षतः यह अनुमान होता है कि मथुरा के निकटवर्ती जिस गोप-बस्ती में श्रीकृष्ण का बाल्यकाल व्यतीत हुआ, उसके समीप निवास करने वाली किसी अहीर बालिका से उनका परिचय हो गया। परिचय घनिष्ठता और स्नेह प्रीति में परिणत हो गया तथा उस अनन्य प्रेम का आदर्श आभीर जाति में प्रचलित हो गया होगा एवं पीढ़ी दर पीढ़ी उस प्रेम कहानी को कहा सुना जाता रहा । यह प्रेम संबंध आभीर जाति के लिए एक धरोहर हो गया हो ऐसा संभव प्रतीत होता है। इसी प्रकार इस जाति में राधा ने किसी युग में प्रेम की देवी का गौरव प्राप्त कर लिया और श्रीकृष्ण बालदेवता के रूप में प्रतिष्ठित हो गये। राधा और कृष्ण के प्रेमगीत पहले लोक भाषा में प्रचलित हुए और तब क्रमशः उन्हें संस्कृत में स्थान मिलने लगा। जब धार्मिक क्षेत्र में विष्णु की शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ तो विष्णु के अवतार रूप में श्रीकृष्ण और उनकी शक्ति के रूप में राधा का चित्रण पुराणादि ग्रंथों में होने लगा। श्रीकृष्णोपासक संप्रदायों की प्रबलता के साथ-साथ राधा का महत्व भी उत्तरोत्तर प्रबल होता गया। इस प्रकार राधा लोकजीवन और लोकमान्यताओं में ही शताब्दियों तक बनी रही और उसका परिवर्तित एवं परिवर्धित रूप ही आगे चलकर साहित्य में उभरा। यही कारण है कि राधा का संबंध लोकजीवन, संस्कृति, साहित्य एवं कलाओं से जितना प्राचीन रहा, उतना इतिहास से नहीं रहा । ब्रह्मवैवर्तपुराण और गर्ग संहिता में राधाकृष्ण की लीलाएँ विस्तार पूर्वक वर्णित मिलती हैं । ब्रजभाषा का काव्य तो इसका अनूठा कोष ही है। श्रीकृष्णराधा की लीलाओं के गान से ब्रज भाषा के माधुर्य और क्षमता में भी अद्भुत अभिवृद्धि हुई है। अभिव्यक्ति के लिए लीलागान जैसा संवैद्य विषय क्षेत्र पाकर यह भाषा स्वयं कृतार्थं एवं धन्य हो उठी है। राधा के स्वरूप की सहज प्रक्रिया राधा के स्वरूप विकास की यह प्रक्रिया अतीव सहज और प्राकत लगती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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