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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
आगम शब्द-मीमांसा
आगम शब्द "आ" उपसर्ग और गम धातु से निष्पन्न हुआ है। "आ"" उपसर्ग का अर्थ समंतात् अर्थात् पूर्ण है तथा गम् धातु का अर्थ गति प्राप्त करना है। 'आगम' शब्द की अनेक परिभाषाएं आचार्यों ने की हैं, जेसे :
(१) जिससे वस्तुत्व या पदार्थ रहस्य का परिज्ञान हो जाय वह आगम
(२) जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो वह आगम है।' (२) जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान हो जाय वह
आगम है। (४) आप्तवचन से उत्पन्न अर्थ या पदार्थ ज्ञान आगम कहलाता है। (५) आप्त का कथन आगम है।' (६) उपचार से आप्तवचन भी आगम माना जाता है।
जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है, वह 'शास्त्र-आगम', 'श्रु तज्ञान' कहलाता है। आगम के पर्यायवाची शब्द
मूल वैदिक शास्त्रों को जैसे वेद और बौद्ध शास्त्रों को जैसे पिटक कहा जाता है, वैसे ही जैनशास्त्रों को 'श्रु त' 'सूत्र' या 'आगम' कहा जाता है । जैनागमों में दर्शन और जीवन का आचार एवं विचार की भावना
१. आसमन्तात् गम्यते वस्तुतत्त्वमनेनेत्यागमः । २. आगम्यते मर्यादयाऽवबुध्यन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागमः-रत्नाकरावतारिकावृत्ति । ३. आ-अभिविधिना सकलश्रुतविद्याव्याप्तिरूपेण मर्यादया वा यथावस्थितरूपयागम्यन्ते-परिच्छिद्यन्ते अर्थायने स आगमः ।
-आवश्यक मलयगिरिवृत्ति; नन्दीसूत्रवृत्ति । ४. आगच्छत्याचार्यपरम्परयार्थावधारणमित्यागमः।
-सिद्धसेनगणीकृत-तत्त्वार्थभाष्यानुसारिणी टीका ५. आप्तोपदेशः शब्दः -न्यायसूत्र १-१७ । ६. आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः उपचारादप्तवचनं च ।
-स्याद्वादमंजरी-२ श्लो० टीका
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