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________________ प्राकृत जैन आगम-श्रीकृष्ण साहित्य भारतीय जन मानस में कृष्ण का व्यक्तित्व अनेक रूपों में आया और उभरा है। इसमें कृष्णचरित्र का जो ताना-बाना गूंथा गया उसमें वैदिक, बौद्ध और जैन विचार के अनुसार ही कृष्ण के व्यक्तित्व में अनेक रंग और अनेक विशेषताएं आकर के घलमिल गई हैं। इस परिस्थिति में शोधकर्ता के सामने अनेक समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। कृष्णचरित्र और उसके जीवन के प्रसंग भिन्न-भिन्न भाषाओं में और भिन्न-भिन्न कालों में संग्रहीत हुए हैं। इसलिए उसका एक सूत्रबद्ध विकास क्रम प्रस्तुत करना एक कठिन कार्य है । शोध की अपनी एक विशिष्ट पद्धति हआ करती है। शोधक जिस पद्धति को लेकर अपना शोधकार्य आगे बढ़ाना चाहता है उसमें कुछ आधारभूत तथ्य लेकर चलना पड़ता है। मैंने अपने विषय प्रवेश में इस शोध विषय के महत्व को आंका है । यहाँ पर इस अध्याय में मैं प्राकृत आगम जैन साहित्य में "श्रीकृष्ण" इस विकास का अनुशीलन प्रस्तुत कर रहा हूँ। यहां पर 'आगम' शब्द जैन साहित्य में एक विशेष महत्व रखता है। इसलिए प्रथम आगम शब्द की परिभाषा और उसकी व्याप्ति पर मैंने विचार किया और बाद में आगम के जिन पर्यायों का प्रयोग जैन साहित्यकारों ने कृष्ण जीवन के प्रसंगों और जैन तीर्थंकर अरिष्टनेमि के जीवन के प्रसंगों के साथ किया है और उसे लेकर श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के साथ मिलाया है। इसमें कुछ गुण साम्य है, कुछ गुण सामर्थ्य साम्य और कुछ अपनी विशेषताएं और वैषम्य भी। इन सब को आगम और आगमेतर की भिन्न-भिन्न विधाओं में जैन साहित्यकारों ने सर्जित किया है। इनकी भाषा प्राकृत रही हैं। यहाँ पर में केवल 'आगम' को लेकर ही अपनी बात कहूंगा। आगमेतर जैन श्रीकृष्ण साहित्य का विवेचन तृतीय अध्याय में किया जायेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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