SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एवं उपसंहार २५७ श्रीकृष्ण हवें वासुदेव हैं वासुदेवों को तीर्थंकरों की भांति एक परंपरा होती है और श्रीकृष्ण इस परंपरा के ६ वासुदेवों में से एक हैं। वासुदेव इस प्रकार एक वर्ग, एक परंपरा, एक श्रेणी है, एक उपाधि है। जैन परंपरा में वासूदेव का अर्थ वासुदेव पुत्र कदापि नहीं है । निश्चित विधान है कि वासुदेव के हाथों प्रतिवासूदेव का पराभव होता है और बलदेव वासुदेव का सहायक होता है। त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र के अतिरिक्त स्थानांग, समवायांग, आवश्यक नियुक्ति आदि में इन सभी ६३ महापुरुषों के विस्तृत परिचय के अतंर्गत उनके माता-पिता के नाम, उनके शारीरिक आकार, आयुष्यादि के विषय में विवरण मिलता है । यथा त्रिषष्टि शलाका पुरुष और स्थानांग-समवायांग के अनुसार बलदेव और वासुदेव वंश मंडन-सदृश थे, वे उत्तम थे, प्रधान थे। वे ओजस्वी, तेजस्वी, बलशाली तथा शोभित शरीर वाले थे। वे कांत, सौम्य, सुभग, प्रियदर्शन, सुरूप, और सुखशील थे। उनके पास प्रत्येक व्यक्ति सुख रूप से पहुंच सकता है। सभी लोग उनके दर्शन के पिपासु हैं । वे महाबली हैं। वे अप्रतिहत और अपराजित हैं । शत्रु का मर्दन करने वाले और हजारों शत्रुओं का मान नष्ट करने वाले हैं। दयालु, अमत्सरी, अचपल और अचण्ड हैं । मृदु, मंजुल और मुस्कराते हुए वार्तालाप करने वाले हैं। उनकी वाणी गंभीर मधुर और सत्य होती है। वे वात्सल्य युक्त होते हैं, और शरण योग्य होते हैं। उनके शरीर लक्षण और चिन्ह युक्त हैं तथा सर्वांग सन्दर होता है। वे चंद्र के समान शीतल और ईर्ष्या रहित हैं। प्रकाण्ड दण्ड नीति वाले हैं। गंभीर दर्शन वाले हैं। बलदेव के ताल ध्वज और वासुदेव के गरुड ध्वज हैं। वे महान धनुष्य का टंकार करने वाले हैं। वे महान बल में समुद्र की तरह हैं। रणांग में वे दुर्धर धनुर्धर हैं। वे वीरधीर पुरुष हैं और युद्ध में कीर्ति प्राप्त करने वाले हैं। वे महान कुल में पैदा हुए हैं और वज्र के भी टकडे कर दें- ऐसे बलवान हैं। वे सौम्य हैं, राजवंश के तिलक के समान हैं, अजित हैं, अजितरथ हैं । बलदेव हाथ में हल रखते हैं, और वासुदेव शंख, चक्र, गदा, शक्ति और नन्दक धारण करते हैं। उनके मकट में श्रेष्ठ, उज्ज्वल, विमल कौस्तुभ मणि होती है, कान में कुण्डल होते हैं जिससे उनका मुख शोभायमान होता है। उनको आंखें कमलसदश होती हैं, उनकी छाती पर एकावली हार लटका रहता है। उनके श्रीवत्स का लांछन है। उनके अंगोपांग में ८०० प्रशस्त चिन्ह शोभित होते हैं। क्रोंच पक्षी के मधर और गंभीर शारद स्वर जैसा उनका निनाद है । बलदेव नीले रंग के और वसुदेव पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। वे तेजस्वी, नरसिंह, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy