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तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एवं उपसंहार
यह अंतिम अध्याय है। मैंने अब तक जो अनुशीलन किया उसको अब भारतीय साहित्य की विभिन्न परंपराओं के साथ श्रीकृष्ण के स्वरूप पर विहगावलोकन करते हुए उसको तुलनीय रूप में देखकर जैन परंपरा में श्रीकृष्ण के श्रीकृष्ण-स्वरूप के तथ्यों को प्रथम प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहा हूँ। इसके बाद अपने समग्र अध्यायों के निष्कर्षों और तथ्यों को प्रस्तुतकर अपने इस उपसंहार को पूर्ण करूँगा। इस उपक्रम में जो तथ्य हाथ लगे हैं उनको सामने रखकर इस क्षेत्र में अलग से अनुशीलनप्रद क्या हो सकता है उस पर केवल इंगित करते हुए मैं इसका समापन करूंगा। भारतीय साहित्य की विभिन्न परंपराओं में श्रीकृष्ण
वासुदेव श्रीकृष्ण 'भारत ही नहीं वरन् समस्त विश्व की महान विभूतियों में अग्रगण्य हैं । भारतीय संस्कृति के प्रत्येक क्षेत्र को उनकी महत्वपूर्ण देन रही है। धर्म, राजनीति, अध्यात्म, दर्शन, समाजशास्त्र आदि सभी श्रीकृष्ण के व्यापक शीलयुक्त व्यक्तित्व एवं कृतित्व से उपकृत हैं। उनके इतने गहन और विशद प्रभाव का प्रमाण इस तथ्य से भली-भांति मिल जाता है कि साहित्य और कला का प्रत्येक क्षेत्र हमें श्रीकृष्णमय मिलता
श्रीकृष्ण चरित्र को देश की सभी भाषाओं के साहित्य में महत्वपूर्ण अपनापन मिला है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी आदि सभी भाषाओं में श्रीकृष्ण सम्बन्धी साहित्य प्राचर्य के साथ मिलता है। प्रादेशिक भाषाओं में भी श्रीकृष्ण चरित्र को महत्वपूर्ण स्थान मिला है और लोक-साहित्य में भी। साहित्य की लगभग सभी विधाओं के माध्यम से इस महान चरित को उजागर करने की सफल चेष्टाएं भारतीय साहित्य के कोष को समृद्ध करने
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