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________________ २४८ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य इस अध्याय में कुल दो फागु काव्य, ३ बेलियां, १ नेमीब्याह, १ नेमिचंद्रिका और कई बारहमासे हैं। इनके अतिरिक्त कई नेमि-राजुल संवाद, वाणी, कृष्ण और नेमि लावणियां भी विद्यमान हैं । तथा एक परिच्छेद रथनेमि और राजीमती विषयक है । ये सारी कृतियां हिंदी जैन कृष्ण काव्य के मुक्तक काव्य विधा को प्रस्तुत कर देती हैं । मैंने भरसक इनको ठीक-ठीक परखने का पूरा प्रयत्न किया है। लावणियां, बारहमासे और संवाद जैसी विधायें लोकमानस में सांस्कृतिक रूप में अधिक प्रतिष्ठित होती रही हैं। इनकी गेयता और इनकी भाव गंभीरता और अनुभूति की तीव्रता उन्हें जनमानस-पटल पर अधिक प्रभाव उत्पन्न करने में सहायक हो जाती हैं। इसमें अनुभूति की प्रामाणिकता भी इसमें चार चांद लगा देती है। मुक्तक काव्य की इस जैन विधा में राजीमती का विरह वर्णन विप्रलंभ का विषय होने पर भी वह जैन दार्शनिकता का वीतरागी तत्त्व आत्मसात करता हुआ सांसारिक असारता और मोह से उबार कर उसको एक ऊंची आध्यात्मिक धरातल पर ला कर बैठा देता है। यह तथ्य अत्यंत मार्के का और अपने ढंग का अनोखा है। बाधाओं के कगारों पर बैठी हुई राजीमती अपने ध्येय पथ से टस से मस नहीं होती। यहां तक की अरिष्टनेमि का सहोदर भाई रथनेमि भी उसको नहीं डिगा सकता। उसके चरित्र का यह अत्यंत अनमोल और उज्ज्वल पक्ष है जो उसे जैन श्रीकृष्ण साहित्य में और वीतरागी जैन परंपरा के साहित्य में सर्वोपरि स्थान देने में हिचकिचाहट नहीं महसूस करेगा। यही मेरा शोध निष्कर्ष इस हिंदी जैन श्रीकृष्ण साहित्य का महत्वपूर्ण तथ्य गेयता और लोकसाहित्यपरक सांस्कृतिक अक्षुप्ण लोकप्रियता यह एक अन्यतम तथ्य और निष्कर्ष इस शोधाध्ययन में मेरे हाथ आया है। इसके बाद मैं अपने समूचे अध्ययन के तथ्यों और निष्कर्षों को लेकर एक तुलनात्मक उपसंहार प्रस्तुत करने का प्रयास करने वाला हूँ। यहां पर उसको मैंने केवल सूचित मात्र कर दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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