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________________ २४७ हिन्दी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य पासक द्वादश व्रतों को ही धारण करते थे। उनके लिए पांच ही अणुव्रत थे, चार नहीं। तथ्य और निष्कर्ष : मुक्तक काव्य में जीवन का अंतर्दर्शन और रागात्मकता की अभिव्यक्ति होती है। इसमें भावना की और अनुभूति की अधिक गहराई होती है। मिलन-विरह, हर्ष-शोक और आनंद-विषाद के चित्र सीमित रूप में ज्ञेयता द्वारा लय और गति के साथ उपस्थित होते हैं। इस प्रकार के काव्य में आत्मनिष्ठा और आत्मानुभूति का भाव प्रकाशन सामने आता है। हिंदी जैन मुक्तक साहित्य में लावणी, ढाल, बारहमासा, भजन, पद जैसा विपुल साहित्य मिलता है। विषय किसी व्यक्ति या प्रसंग को लेकर ही क्यों न हों उसमें शृंगार से आरंभ होकर उसकी परिगति वीतराग रस में होती है। संसार की स्वार्थपरता से भयभीत होकर अंत में शांति प्राप्ति के लिए अंतर्मुख होकर अंतरातम से प्रेरणा प्राप्त की जाती है । ऐसे पदों में आत्म-चेतना की जागृति और गहरी आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति उसका लक्ष्य होता है। उसमें आत्मनिवेदन भी एक विशेषता है। जीवन के सूक्ष्म व्यापक सत्यों का उद्घाटन करना, मानव के प्रकृत रागद्वेषों का परिमार्जन करना और मानव की स्वभावगत इच्छाओं तथा आकांक्षाओं और प्रवृत्ति-निवृत्तियों का सामंजस्य करना जैन मुक्तक काव्यों का वर्ण्य विषय है। काव्य के “सत्यं शीलं सुंदरम्" इन तीन अवयवों में से जैन मुक्तक काव्यों में लोकहित, शिवत्व की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह एवं संयम की विवेचना सूक्ष्मता के साथ अभिव्यक्ति हुई है । वैराग्य भावना संसार की असारता को प्रकट करती है । जनकल्याण के लिए मानवता का चरम विकास आवश्यक होता है, जैन मुक्तक काव्यों में यह सब सरसता के साथ अभिव्यक्त हुआ है। मैंने इस अध्याय में जिन मुक्तक काव्य-विधाओं को अध्ययन में लिया है, उन सब में यही आत्मनिष्ठता और वैराग्य से उत्पन्न वीतराग रस प्रधान है। शृगार रस को भी उदात्तीकरण के साथ वीतराग रस में परिणत करना यही हिंदी जैन मुक्तक काव्यों की अन्यतम विशेषता है। मैंने अपने अनुशीलन में इसे यथासंभव दिखाने की भरसक चेष्टा की है। ४२. धर्मकथानुयोग : एक समीक्षात्मक अध्ययन, देवेंद्र मुनि शास्त्री, पृ० ५५ भूमिका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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