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________________ हिन्दी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य २४५ अरिष्टनेमि तीन सौ वर्ष कुमारावस्था में रहे, सात सौ वर्ष छद्मस्थ व केवली अवस्था में रहे, इस तरह उन्होंने एक हजार वर्ष का आयुष्य भोगा। जिज्ञासा यह है कि रथनेमि भगवान् अरिष्टनेमि के लघुभ्राता हैं। भगवान् तीन सौ वर्ष गहस्थाश्रम में रहे तथा रथनेमि और राजीमती चार सौ वर्ष । राजीमती और अरिष्टनेमि के निर्वाण में सिर्फ चौपन दिन का अंतर है । चौपन दिन के अंतर का उल्लेख कवियों की रचना में मिलता है। यदि उस उल्लेख को प्रामाणिक माना जाय तो यह स्पष्ट है कि राजीमती का दो सौ वर्ष तक दीक्षित न होना तथा गृहस्थाश्रम में रहना चिंतनीय विषय है। विज्ञों को इस संबंध में अपना मौलिक चिंतन प्रस्तुत करना चाहिये। उत्तराध्ययन सूत्र की सुखबोधा वृत्ति तथा वादीवेताल शांतिसूरि रचित बृहद्वृत्ति, मलधारी आचार्य हेमचन्द्र के भवभावना ग्रंथ कि दृष्टि से अरिष्टनेमि के प्रथम प्रवचन को श्रवण कर राजीमती दीक्षा ग्रहण करती है और कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार गजसुकुमाल मुनि के मोक्ष जाने के पश्चात् राजीमती नंद की कन्या एकवासा तथा यादवों की अनेक महिलाओं के साथ दीक्षा ग्रहण करती है। राजीमती यह सोचने लगी कि भगवान् अरिष्टनेमि धन्य हैं जिन्होंने मोह को जीत ज्ञिया । मुझे धिक्कार है जो मैं मोह के दलदल में फंसी हूं। इसलिए यही श्रेयस्कर है की मैं दीक्षा ग्रहण करूं । इस प्रकार राजीमती ने दृढ़ संकल्प कर कंघी के संवारे काले केशों को उखाड़ डाला। श्रीकृष्ण ने आशीर्वाद दिया हे कन्ये ! इस भयंकर संसार रूपी सागर से तू शीघ्र तिरजा । रथनेमि ने भी उसी समय भगवान् के पास संयम ग्रहण किया। एक दिन की घटना है-बादलों की गड़गडाहट से दिशाएं कांप रही थीं। रेवतक का वनप्रांतर सांय-सांय कर रहा था। साध्वी समूह के साथ राजीमती रेवतक गिरि पर चढ़ रही थी। एकाएक छमाछम वर्षा होने लगी। साध्वी समूह आश्रय की खोज में इधर-उधर बिखर गया। बिछुड़ी हुई राजहंसिनी की तरह राजीमती ने एक अन्धेरी गुफा का शरण लिया। राजीमती ने एकांत स्थान निहार कर संपूर्ण गीले वस्त्र उतार दिये और उन्हें सूखने के लिए फैला दिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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