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________________ २४१ हिंदी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य रहसी वो तो शादी बिना, नेमजी अवतार रो, राजुल तो पालेला शुद्ध शील ने, धन्य-धन्य यारों सफल हो गयो जीवन संसार में, धर्म दीपायो जग मायने ।38 (१२) नेमजी की लावणी—कविवर लवणराम । नेमजी की जान बनी भारी, देखन कुं आवे नर नारी। अति है घोड़ा और हाथी, मनख री गिनती नहीं आती। ऊंट पर धजाजो फहराती, धमक से धरती थर्राती ॥ दोहा : समुद्र विजयजी को लाडीलो, नेमजी उनका नाम । राजुल देख आये परणवा, उग्रसेन घर ठाम। प्रसन्न भइ नगरी सब सारी, नेमजी की जान बनी भारी । कसुंबल बागा अतिभारी, काने कुंडल छबि है न्यारी, कलंगी तोरा सुखकारी, माला गले मोतियन को डाली, दोहा : काने कुंडल जगमगे, शीष खूब झलकार । कोटीभानु की करव उपमा, शोभा अधिक अपार । बाज रह्या बाजा टक्सारी, नेमजी की... नेमजी वचन फरमाए, पशु जीव काए को लाये । दोहा : यांको भोजन होवसी जान वासते लेह, सुनी वचन यह नेमजी थर-थर कांपे देह, भाव सु चढ़ गउ गिरनारी, नेमजी की जान... झरखे राजुल दे आई, हाथ जल पकड्यो छिन माई कहा तूं जावे मेरी जाई, ओखर है तुम मोकलाई दोहा : मेरे तो वर एक ही, हो गया नेम कुंवार । और भुवन में बर नहीं, कोटि करो विचार । दीक्षा जब राजुल ने धारी, नेमजी की जान... सहेल्या सब ही समझावे, हीए राजुल के नही आवे, जगत सब झूठे दरसावे, मेरे मन नेम कुंवर भावे, दोहा : तोङ्यां कांकर दोरड़ा, तोङ्या नवसर हार, काजल टीकि पान सोपारी, त्यागा सब सिणगार, ३६. नेमजी राजुल संवाद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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