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हिंदी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य
रहसी वो तो शादी बिना, नेमजी अवतार रो,
राजुल तो पालेला शुद्ध शील ने, धन्य-धन्य यारों सफल हो गयो जीवन संसार में,
धर्म दीपायो जग मायने ।38 (१२) नेमजी की लावणी—कविवर लवणराम ।
नेमजी की जान बनी भारी, देखन कुं आवे नर नारी। अति है घोड़ा और हाथी, मनख री गिनती नहीं आती।
ऊंट पर धजाजो फहराती, धमक से धरती थर्राती ॥ दोहा : समुद्र विजयजी को लाडीलो, नेमजी उनका नाम ।
राजुल देख आये परणवा, उग्रसेन घर ठाम। प्रसन्न भइ नगरी सब सारी, नेमजी की जान बनी भारी । कसुंबल बागा अतिभारी, काने कुंडल छबि है न्यारी,
कलंगी तोरा सुखकारी, माला गले मोतियन को डाली, दोहा : काने कुंडल जगमगे, शीष खूब झलकार ।
कोटीभानु की करव उपमा, शोभा अधिक अपार । बाज रह्या बाजा टक्सारी, नेमजी की...
नेमजी वचन फरमाए, पशु जीव काए को लाये । दोहा : यांको भोजन होवसी जान वासते लेह,
सुनी वचन यह नेमजी थर-थर कांपे देह, भाव सु चढ़ गउ गिरनारी, नेमजी की जान... झरखे राजुल दे आई, हाथ जल पकड्यो छिन माई
कहा तूं जावे मेरी जाई, ओखर है तुम मोकलाई दोहा : मेरे तो वर एक ही, हो गया नेम कुंवार ।
और भुवन में बर नहीं, कोटि करो विचार । दीक्षा जब राजुल ने धारी, नेमजी की जान... सहेल्या सब ही समझावे, हीए राजुल के नही आवे,
जगत सब झूठे दरसावे, मेरे मन नेम कुंवर भावे, दोहा : तोङ्यां कांकर दोरड़ा, तोङ्या नवसर हार,
काजल टीकि पान सोपारी, त्यागा सब सिणगार,
३६. नेमजी राजुल संवाद ।
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