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जैन-परम्परा में श्रीकृष्ण साहित्य राजुल : प्राणनाथ हो आप नेम जी दूज्यो नहीं नाथ जी।
नेम का चरण में चित राख स्यूं ॥ नेमजी : शुद्ध रेवेला शील थारो सुनज्यो राजुल नार ए।
शील री महिमा रो नहीं पार ए। सखियां : सखियां तो अरदास करे सुन ज्यो राजुल बाई सा,
__ ध्यान छोड़ो ए नेम कुवांर को ॥ सखियां : काला पीला नेम सरीखा घणा है संसार में,
ब्याव तो करोनी सुख चैन सु ।। राजुल : काला पीला जो भी नेमजी हृदय रा वो हार है।
हां-नेम री महिमा रो नहीं पार ए॥ नेमजी : सखियां तो भरमासी थाने सुनज्यो राजुल नार हो ।
सखियां री बैखावट मति मान ज्यो ।। दोहा : बिना ब्याव के लौट गये, छोड़ मोह जंजाल, विरक्त भाव से रहते हैं नेम नाथ भगवान् । एक करोड़ अस्सी लाख सोनया, करते प्रति-दिन दान । ऐसे महापुरुषों को पूनम करे प्रणाम ।। सुनकर इस संदेश को, राजुल भई बेहोश । सन्नाटा तब छा गया, दोनों पक्षों में घोर ।। सखियां : करे करे सखियां, उपचार राजुल नार ए,
हिंमत तो धारो ए, जग मायने । नेमजी : संदेश अब भेज रहे हैं सुनजो राजुल नार ए,
प्रेरणा देने में तोरण आवियो। इस भव का संबंध तुम से सुनजे राजुल नार ए,
अमर रहवेला जग मायने ।। संसारी वैभव में सुख नहीं है संसार में
संबंध तो जोड़ों ए परलोक को ।। दोहा : मैं तो अब तैयार हूं, तुम होवो तैयार ! सफल करें मानव को, सर्वोत्तम सिद्धि पाय । दोहा : सुनकर शुभ सन्देश को, राजुल करे विचार । संजम लेस्यू शान सुं, सुनज्यो नेम कुंवार ।। शुभ मोहरत शुभ लग्न में, संजम सुखरो विचार । सात सो कन्या रे साथ में, राजुल वणी अणगार ।। राजुल : दे दे म्हाने सत रो, आदेश माता प्यारी थे,
__ संजम तो धारुं हो सुख चैन को ।
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