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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य कोइल महुर वयणु चाए रवइ, विवीहउ घाह करेई ।
सावणु नेमि जिणिद विणू, भगइ कुमरि किय-गमणउ जाए ॥२॥ प्रस्तुत बारहमासा १६ पद्यों का है, प्रथम व १५ वें पध में कवि का का नाम आता है, वे दोनों पद्य इस प्रकार हैंआदि
कासमीर मुख मंडण देवी, वाएसरि 'पाल्हणु' पणमेवी। पदमावतिय चक्केसरि नमिऊ, अंबिकदेवी हउं वीनवउ ।। चरिउ पयासउ नेमि जिण केरउ, कवितु गुण धम्म निवासो ।
जिम राइमइ विओगु भओ, बारह मास पयासउ रासो ॥१॥ अत
जो जादवकुल मंडल सारो, जिणि तिणि चडि परिहरिउ संसारो। कुमरि तजिय तपु लउ गिरनारे, सिधि परिणउ गउ मोख दुवारे । जणु परिमलु ‘पाल्हणु' भणए, तसु पय अणुदिण भत्ति करेउ । मणवंछिउ फलु पाविजए, धुय सम सरिसु वयणु फुड एहु ॥१५।। इणि परि भणिया 'बारहमासा' पठत सुणंतहं पूजउ आसा। रायमइ नेमिकुमर बहु चरिउ, संखेविण कवि इणि परि कहिउ।
अंबिकदेवी सासण देवि माई, संघ सानिधु करिजउ समुदाई ॥१६॥ (१०) नेमि-बारहमासा
नेमजी ओ रंगरंगीला छेल-छबीला छोड़ चल्याजी गिरनार । नेमजी ओ जेठज मासज जेठज मासज आयो मांरा नेमजी आयो मारा पिउजी धरती करे रे पुकार'.. नेमजी ओ आषढ़ मासज आषढ़ मासज आयो मांरा नेमजी आयो मारा पिउ जी धूल उठे छे अपार... नेमजी ओ श्रावण मासज, श्रावण मासज आयो मांरा नेमजी आयो मारा पिउ जी घटा घडी धनघोर... नेमजी ओ भादव मासज, भादव मासज आयो मारा नेमजी आयो मारा पिउ जी वर्षन लाग्यो नीर... नेमजी ओ आसोज मासज, आसोज मासज आयो मांरा नेमजी आयो मारा पिउ जी जोगी बण गया ज़ाट... नेमजी ओ कातिक मासज, कातिक मासज आयो मांरा नेमजी
३४. नेमि बारहमासा (कंठाभरण से)
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