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हिंदी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य
२३७. इसी प्रकार राजुल ने १२ महीनों की भीषणता का चित्रांकन किया है। नेमिनाथ इन विभीषिकाओं से नहीं डरते। वह तो अपने व्रत में दढ़ रहते हैं। इस प्रसंग के सभी पद्य सरल और मधुर हैं। कार्तिक मास का चित्रण करती हुई राजल कहती है
पिय कातिक में मन कैसे रहे, जब भामिनि भौन सजावेंगी। रचि चित्र विचित्र सुरंग सजे, घरहीं घर मंगल गावेंगी। पिय नूतन नारि सिंगार किए, आनो पिय टेर बुलावेंगी।
पिय बारहि बार बरै दियरा,...जियरा तरसावेंगी ॥30 नेमिनाथ का प्रत्युत्तर
तो जियरा तरसे सुन राजुल, जो तन को अपने कर जाने । पुद्गल भिन्न है भिन्न सबे, तन छोड़ि मनोरथ आन सयाने ॥ बूड़े गो सोई कलिधार में, जउ चेतन को को एक प्रमाने ।
हंस पिवे पय भिन्न करे जल, सो परमातम आतम जाने ॥1 वसंत ऋतु के आमन की विभीषिका दिखलाती हुई राजुल कहती है : पिय लागेगो चैत वसंत सुहावनो, फूलेगी बेल सबे वन माहीं। फूलेंगी कामिनी जाको पिया घर, फूलेंगी फूल सबे बनराई । खेलहिंगे ब्रज के बन में सब, बाल-गुपालरु कूवर कन्हाई।
नेमि पिया उठ आवो घरे तुम, काहेको करहो लोग हंसाई ।।322 (९) बारह मासा वर्णन
उपलब्ध बारह मासों में सबसे प्राचीन “जिन-धर्मसूरि बारह नांव उ” है जो अपभ्रंश भाषा की रचना है। उसके पश्चात कवि पाल्हण रचित नेमिनाथ बारह मासा मिलता है। पाल्हण का आबरास सं० १२८६ की रचना होने से इस बारह मासा का रचनाकाल भी इसी के आसपास होना चाहिए।33. यथा
सावणि सघण धुडुक्कइ मेहो, पावसि पत्तउ नेमि विछोहो। दद्धर मोरलवहिं असंगाह, दहदिह बीजु खिवइ चउवाह ।
३०. बारहमासा नेमि राजुलः ले० विनोदीलाल, हिंदी जैन साहित्य परिशीलन भाग
१. ले० नेमिचंद शास्त्री, पृ० २०२-५ । ३१. वही३२. वही३३. राजस्थानी साहित्य की गौरवपूर्ण परंपरा, ले० अगरचंद नाहटा,
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