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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहिय उचित नहीं है। श्रावण मास में व्रत लेने से घनघोर बादलों का गर्जन, विद्युत् की चकाचोंध, कोयल की कूहुक, अंधकारपूर्ण यामिनी और पूर्वी पूर्वी हवा के मधुर शीतल झोंके आपको वासना से परिपूर्ण किए बिना नहीं रहेंगे। अतएव इस महीने में दीक्षा लेना खतरे से खाली नहीं है। अतः इस समय तप साधना करना भी ठीक नहीं है।"
राजुल को उक्त बातों का उत्तर नेमिनाथ ने बड़े ही ओजस्वी शब्दों में दिया है। वे कहते हैं कि “जब तक व्यक्ति आत्मशोधन नहीं कर लेता तब तक राष्ट्र का हित नहीं कर सकता । आत्मशोधन के लिए समय विशेष की आवश्यता नहीं रहती। भय और त्रास उन्हीं व्यक्तियों को विचलित कर सकते हैं जिनके मन में किसी भी प्रकार का प्रलोभन शेष रहता है। मेरे मन में कोई प्रलोभन नहीं है । प्रकृति के मनोहर रूप में जहां रमणीय भावनाओं को जागरुक करने की क्षमता है वहां उसमें वीरता, धीरता और कर्तव्यपरायणता की भावना उत्पन्न करने की योग्यता भा विद्यमान है। अतः श्रावण मास की झड़ी, वासना के स्थान पर विरक्ति ही उत्पन्न कर सकेगी।" नेमिनाथ के इस उत्तर को सुनकर राजुल भाद्रपद मास की कठिनाइयों का विवेचन करती है, वह मोहवश उनसे प्रार्थना करती हुई करती है कि "प्राणनाथ, आप जैसे सुकुमार व्यक्ति भाद्रपद मास की अनवरत होने वाली वर्षा ऋतु की मुक्त प्रवृत्ति में, जहां न भव्य प्रासाद होगा न वस्त्रवेश्म, आप किस प्रकार रह सकेंगे ? झंझावात, नन्हींनन्हीं पानी की बूंदे पानी से युक्त होकर शरीर में अपूर्व वेदना उत्पन्न करेंगी। यदि आपको योग धारण ही करना है तो घर पर चलकर योग धारण कीजिए । सेवक को वन जाना आवश्यक नहीं, वह घर में रहकर भी सेवा कार्य कर सकता है। प्राणनाथ, मैं यह मानती हूं कि इस समय देश में हिंसा का बोलबाला है, इसे दूर करने के लिए पहले अपने को पूर्ण अहिंसक बनाना पड़ेगा, तभी देश का कल्याण हो सकेगा। परंतु, आपका मोह मुझे इस बात की प्रेरणा दे रहा है कि मैं इस कठिनाई से आपकी रक्षा करूं।"
राजुल की इन बातों को सुनकर नेमिनाथ हंस पड़ते हैं और कहते हैं कि "कष्ट सहिष्णु बनना प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक है। ये थोड़े से कष्ट किस गिनती में हैं ? जब नरक निगोद के भयंकर कष्ट सहे हैं तथा जब इस समय हमारा राष्ट्र संतप्त है, प्रत्येक प्राणी हिंसा से छटपटा रहा है, उस समय तुम्हारी ये मोहभरी बातें कुछ भी महत्व नहीं रखतीं। मैंने अच्छी तरह निश्चय करने के उपरांत ही इस मार्ग का अवलंबन लिया है।'
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