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हिंदी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य
२३५ सकल भूप सेवत तिन पांय ।
देव करत आज्ञा मन भाय ॥27 एक और वर्णन द्रष्टव्य है जिसमें सांसारिक अस्थिरता एवं झूठे स्वार्थ से प्रेरित विरक्ति के भाव निर्वेद की पुष्टि करते हैं, इसे देखिए
अस्थिर वस्तु जितनी जग मांहि उपजत विणसत संशय नांहि ।। स्वारथ पाय सकल हित करे।
बिन स्वारथ काउ हाथ न धरे ।।28 (८) बारह मासा नेमि-राजुल
जैन कवियों ने बारह मासों की रचना करके अपनी राष्ट्रीयता की भावनाओं का संदर चित्रण किया है, इसमें वीरता का भी प्रदर्शन है। बारह मासों में संवाद शैली में सेवा तथा वैराग्य की भावना को प्रकर्ष दिया गया है और अंत में उसी का महत्त्व है। संवादों के माध्यम से इसमें विभिन्न मानवीय भावनाओं का सुंदर अंकन दिखाई देता है । इस कृति का रचयिता कवि विनोदीलाल है ।29
इसमें राजुल अपने संकल्पित पति नेमिनाथ से अनुरोध करती है कि "स्वामी आप इस यवावस्था में विरक्तभाव से क्यों तपस्या करने जाते हैं ? यदि आपको तपस्या करना ही अभीष्ट था और आप देश में अहिंसा संस्कृति का प्रचार करना चाहते थे तो आपने आषाढ़ महीने में यह व्रत क्यों नहीं लिया ? जब आप श्रावण में विवाह की तैयारी कर आ गए तब क्यों आप इस तरह मुझे ठुकराकर जा रहे हैं ? मेरा मंतव्य है कि राष्ट्रोत्थान में भाग लेना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। स्वर्णिम अतीत हरेक सहृदय को प्रभावित करता ही है। राष्ट्र की संपत्ति युवक और युवतियां हैं और इन्हीं के ऊपर राष्ट्र का समुचा उत्तरदायित्व है। इसलिए आपका महत्वपूर्ण त्याग वैयक्तिक साधना न होकर राष्ट्रहित साधन बन जायगा। फिर भी मैं आपके कोमल शरीर व ललित कामनाओं का अनुभव करती हूं, इसलिए मेरा आपसे नम्र निवेदन है कि यह व्रत आपके लिए
२७. नेमिचंद्रिका--छंद १६-२० २८. वही२०. बारह मासा नेमि राजुल : ले० विनोदीलाल, हिंदी जैन साहित्य परिशीलनः
ले० नेमिचंद्र शास्त्री, पृ० २०२-५,
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