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हिन्दी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य
२३३ नेमिनाथ ऐसे ही असाधारण व्यक्ति थे । कवि विनोदीलाल ने रचना के आरंभ में वर की वेषभूषा का जो वर्णन किया है वह द्रष्टव्य है
मोर धरो सिर दूलह के कर कंकण बांध दई कस डोरी । कुंडल कानन में झलके अति भाल में लाल विराजत रोरी। मोतिन की लड शोभित है छवि देखि लजे बनिता सब गोरी।
लाल विनोदो के साहिब मुख देखन को दुनियां उठ दौरी ॥1 विरक्त होने काले नेमिनाथ का चित्रणः
नेम उदास भये जब से कर जोड़ के सिद्ध का नाम लियो है। अम्बर भूषण डार दिये शिरमोर उतारके डार दियो है ।। रूप धरों मुनिका जब ही तब ही चढ़ि के गिरनारि गयो है ।
लाल विनोदी के साहिब ने तहां पांच महाव्रत योग लयो है ।।22 कवि ने इस रचना में युवकों के आदर्श के साथ युवतियों के आदर्श का भी सुंदर अंकन किया है । जब तक देश का नारी समाज जाग्रत नहीं होगा और विवाह ही जीवन का उद्देश्य है इस सिद्धांत का त्याग नहीं करेगा तब तक राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता। राजल ने ऐसा ही आदर्श प्रस्तुत किया है । भोग-जीवन का जघन्य लक्ष्य है। व्यक्ति जब भोगवाद से ऊपर उठता है तभी वह सेवा कार्य में प्रवत्त हो सकता है । जब माता-पिता राजुल को पुनः वरान्वेषण की बात कहकर संतुष्ट करते हैं, तब राजुल ही सुंदर उत्तर देती हुई कहती है
काहे न बात सम्हाल कहो तुम जानत होयहो बात भली है । गालियां काढ़ कहो हमको सुनो तात भली तुम जीभ चली है । मैं सबको तुम तुल्य गिनौ तुम जानत ना यह बात रलो है।
या भव में पति नेम प्रभू वह लाल विनोदी को नाथ बली है ।।23 (७) नेमि चन्द्रिका
प्रस्तुत कृति का रचयिता मनरंगलाल पल्लीवाल है। ग्रंथ के अंत में परिचय देते हुए लेखक ने लिखा है कि वह कान्यकुब्ज (कन्नौज) का
२१. नेमिब्याह : कवि विनोदीलाल-हिंदी जैन साहित्य परिशीलनः ले० डा०नेमिचंद्र
शास्त्री, पृ० १ से २२। २२. वही२३. वही
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